Reality of Gandhi || आज Gandhi से मोह भंग क्यों? Sushil Pandit || Shankar Saran

नीचे मानुषी इंडिया यूट्यूब चैनल पर 28 अक्टूबर, 2021 को  प्रस्तुत, प्रोफेसर नागराज पतुरी के साथ मधु किश्वर का एक साक्षात्कार है। लेख का वीडियो रूप यहां देखा जा सकता है  https://www.youtube.com/watch?v=YYXSG_Qxd94


Madhu Kishwar: आज हम एक बहुत ही controversial topic पे बात करने जा रहे हैं | विषय है: गाँधीजी से आज मोह भंग क्यों? और इस वार्ता में मेरे साथ सुशिल पंडितजी और शंकर शरणजी जुड़ रहे हैं।

ये दोनों नारेबाज़ी की राजनीति से बहुत ऊपर उठ कर बात करते हैं, गहन अध्यन करते हैं, और इसलिए इन दोनों का मैं बहुत सम्मान करती हूं | और दोनों ही एक क़िस्म से गाँधी से बहुत पीड़ित  हैं | गाँधीसे मेरा मोह भंग तो देर से हुआ | सुशिल पंडितजी और शंकर शरणजी शायद मेरी तरह गाँधीजी के trap में कभी नहीं फंसे | 

पर, friends, मैं तो एक मायने में शुक्रगुजार हूं  कि गाँधीजी का सहारा लेकर मैंने Nehruvian ideology और Commie ideology से मुक्त रही।जिस गाँधीजी  की मैं मुरीद थी, वे गाँधीजी थे जो अंतिम जन  की बात कर रहे थे | और कोई भी व्यक्ति जो इस देश की गरीबी, ग़ुरबत, और जो इस देश के oppressed लोग हैं उनकी सम्मस्याओं से जुड़ा  देखती हूँ, तो प्रभावित हो जाती हूँ।

आज़ादी के बाद बहुत  बदहाली में अँगरेज़ हमें छोड़ कर गए |  उससे पहले एक हज़ार साल की Islamic गुलामी हमने झेली। जिस दरिद्रता  में 1947’ में हमें तथाकथित आज़ादी मिली तो उस समय वाक़यी ही भारत ऐसी भीषण समस्याओं से  जूझ रहा था जिस  को सोच कर​ बहुत मन दुखताहैं। जो गरीबी और ग़ुरबत 1947 में हमारा समाज झेल रहा था  वह हमारी कोई पारम्परिक या हमारे पुरातन समाज की देन नहीं थी | It is very clear it  was the product  of colonial  rule.  इसलिए जिसने अंतिम जन  की चिंता की उसके प्रति मन में सम्मान भावना आना स्वाभाविक था। और Communist विचारधारा के पास मैं नहीं जाना चाहती थी; उसकी विकृतियाँ बहुत पहले समझ आ गई थीं | 

तो, गाँधीजी एक मायने में मेरे लिए political, ethical, और moral anchor बन गए  | दूसरा, गाँधीजी  की जो स्वराज  की  परिकल्पना थी और जो गाँधीजी का चित्रण Historian धर्मपालजी ने पेश किया था  मैं उससे बहुत प्रभावित थी | और जैसा मैंने कहा  कि गाँधी  की वजह से Leftist और  Nehruvian होने के  पापों से मैं बच गई;  उस मायने में  मैं अभी भी गाँधी  की शुक्रगुज़ार हूं | परन्तु बहुत से ऐसे गाँधीजी ने अपराध किये हैं इस देश पर और इस हिन्दू समाज पर कि आज सोच के भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं  | हम इतने मूर्ख​ बन गए,  कि उन्हें राष्ट्र पिता बना लिया?

परन्तु जब मैं गाँधी की बात करती थी, तो उनकी  भूमिका  औरतों को आज़ादी के आन्दोलन में एक प्रतिष्ठित भूमिका देने का जो श्रेय था उसपे मैंने बात की थी |  मुझे याद है  कि जब मेरा ​पहला paper, as a JNU MA student, जो मेरा term paper था, जो बाद में जाके Economic and Political Weekly ​  में छपा था, ‘Gandhian Women’, वह इसी भूमिका के बारे में था | और वह आज भी मैं मानती हूं  कि वह भूमिका के अच्छे पहलु बहुत से हैं, और कम अच्छे पहलु भी हैं |

 परन्तु मैं इसलिए यह ​भूमिका बाँध रही हूं  कि मेरे लिए यह ​सारी journey बहुत ही painful रही हैं |  जब मैं गाँधी  की  बात करती थी तो उस वक़्त Leftists, Feminists डंडा लेके मेरे ऊपर सवार होते थे | उन दिनों fashionable नहीं थे गाँधी | 

और मुझे याद है Economic and Political Weekly ​ ​ में मेरा जब यह ​लेख छपा तो सुजाता पटेल जैसे लोगों ने मेरी धज्जियाँ उड़ाने का प्रयास किया | और उस वक़्त गाँधीजी के लिए Petty Bourgeoisie, Patriarch, Chauvinist  जैसे labels खूब चलते थे | दूसरी ओर जो Leftist थे वह गाँधीजी को Lackey of British imperialism, Running dog of the capitalist class इस तरह के वाहियात शब्द इनके academic tracts में, E. M. S.  Namboodiripad के writings में, देते थे | तीसरा, कब Leftists को, Islamists को,  गाँधी से प्यार होने लगा  मुझे यह भी हैरत होती थी शंकरजी ? और यह ​जो newfound love है गाँधीजी के लिए Islamists का और Leftists का, इस बात  कि हम चर्चा भी करेंगे |

Islamists के लिए मुझे हैरत होती थी |  यहाँ गाँधीजी जान दे बैठे, मुसलमानों को Partition के बाद भी हिंदुस्तान में रहने का हक दिया, किसी को समझ नहीं आई यह ​बात | सबके कलेजे फट गए | मेरे जैसे Partition refugee families:  मुझे याद है मेरे माँ-पिताजी इस बारे में बात करते थे, वे कहते थे, “ हमें समझ में ही नहीं आई यह ​ क्या रहे हैं? राजा तो बदलते देखे हैं, प्रजा बदलते किसी ने नहीं देखि|”  और गाँधी ने इसे स्वीकार भी किया |  और उसके बाद फिर यहाँ पे हिन्दुओं को किस तरह से द्वयं दर्जा दिया even for refugees.  गाँधीने किस-किस तरह  की हरक़तें  की वह शंकरजी और सुशिलजी आप उसका जरुर ब्यौरा करेंगे | 

वैसे राष्ट्रपिता कहते हैं गाँधी को भारत का, परन्तु जब उनका Partition को लेके अगर हम role देखें, तो क्या गाँधीजी पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे ?  मैं इस बात पे भी चर्चा करना चाहूंगी | सही में  भारत तो हज़ारो साल पुरानी एक Civilization हैं तो इसके कहाँ से राष्ट्रपिता बन सकेंगे ?  पाकिस्तान नहीं था, उनको birth किया, midwife थे उस कि क्या-क्या थे परन्तु Islamists भी बहुत गालियाँ देते थे | मुझे हैरत होती थी  कि यह ​बन्दा इनके लिए मर गया फिर भी | मुझे वह गाना याद आता हैं देवदास का “ जिसे तू  कबूल कर ले, वो अदा कहाँ से लाऊं ; तेरे दिल को जो लुभायें, वो सदा कहाँ से लाऊं ” something, something.  

तो गाँधीजी ने भरसक प्रयास किये, लोट-पोट हो गए इनके पैरों पे, पर इस्लामियों के हलक से नहीं उतरते थे | उस की एक वजह थी क्यूंकि गाँधी भजन-किर्तन भी करते थे और राम-राज्य  की बात करते थे | हालांकि, गाँधी के राम राज्य में Muslims, Christians first class citizens  होते हैं, हम second, third class होते  हैं | पर नहीं, वह भी स्वीकार नहीं था |

मैं यह ​छोटी सी भूमिका और बताना चाहती हूं क्यूंकि मैंने खुद देखा बड़े करीब से Leftist politics को और यह ​Islamist संगठनों  की politics को | गाँधीजी fashionable कब बनें ? आपमें से किसी को कुछ याद है? 

Sushil Pandit: आपने मेरा परिचय देते वक़्त कहा था  कि शायद गाँधी का प्रभाव या जादू मेरे ऊपर बहुत पहले से नहीं था | देखिये, school तक और college तक आते-आते मैं अपने आप को एक fence-sitter समझता था | मुझे गाँधीजीके विषय में बहुत सी बातों में आपत्ति भी थी  और कई विषयों पर थोड़ा कौतुक था और थोड़ी प्रशंसा थी | आम-तौर पर उनकी प्रशंसा ज्यादातर होती थी | जो लोग पढ़-लिख रहे थे, समझ रहे थे,  कि चलिए राष्ट्रपिता हैं, महात्मा हैं |सबसे बड़ा जो उनको escape route मिला life में, जो मैं जानता हूं और मानता हूं, वह गाँधीजी वध था | 

वध से पहले तक उनकी समीक्षा, उनकी आलोचना, उनके विषय में सामानांतर विचार चलते रहे और तीखे होते रहे | लेकिन उनके वध ने, उनके सारे खून माफ़ कर दिए और उनको मानव से उठा करके एक दैवीय श्रेणी में पहुँचाने के जो प्रयास चलते थे उनको बहुत बल दिया | तो इस कारण जो उनका महीन एक विशलेषण होना चाहिए था, और बेबाक एक विशलेषण होना चाहिए था, बिलकुल brutal और clinical एक analysis होना चाहिए था, वह होना बंद हो गया | उनकी deification हो गई | और 80 के दशक तक आते-आते जब मैंने 30 भी पुरे नहीं किये थे, अभी पढ़-लिख ही रहे थे, और समझ ही रहे थे दुनिया को, तो Attenborough  की “गाँधी ” आई और उसको देख कर मैं आपको बताऊं, मेरा भी बीच-बीच में गला भीग जाता था | 

तो उसने गाँधीजी  की एक packaging  की,  गाँधीजी को एक brand बनाया और popular consciousness में उसको position किया | वहाँ  से फिर गाँधीजी छुए जाने लायक भी नहीं रहे, बिलकुल फलक पे पहुँच गए | आप उनकी महिमा कर सकते थे, उनका गुणगान कर सकते थे, उनपे आक्षेप लगाने के लिए फिर आपको बहुत बड़ा गुर्दा चाहिए था | तो, यह ​मुझे लगता है  कि वह जो गाँधीजी का एक पुनर्स्थापन हुआ उसमे दो पड़ाव हैं : एक उनका वध और फिर यह ​गाँधी का brand बन कर के उनका बेचा जाना  | बिलकुल stratosphere से, गुर्त्वाकर्षण से उनको मुक्त कर के उनको बिलकुल अन्तरिक्ष में पहुँचा​ना, ये ​दो काम मुझे लगता है शायद उसमे मदद करेगा |

Madhu Kishwar:- मैंने यह ​सिर्फ देखा ही नहीं अपने आँख से, बल्कि इसमें हस्तक्षेप भी किया | आपको याद होगा, सहमत  एक नए platform के रूप में Congress ने खड़ी कर दी थी;  Safdar Hashmi Memorial Trust, हालांकि Safdar Hashmi का वध Congress के गुंडों ने किया था | Congress ने जल्दी संभाल लिया और उनकी बहन को, उनके भाई को, और उनके पत्नी को लाके,  artists के लिए, पूरा एक well funded, well provided for, पूरा एक forum खड़ा कर दिया सहमत, जिसमे सारे ये ​JNU historians, Romila Thapar, ये ​भी नए-नए Communist-मुल्ले जुड़ गए | 

मुझे याद है CPM  की party Congress होती थी उन दिनों | उन्ही वर्षों में, यह ​90s  कि शायद बात है | तो, CPM  की  party Congress में formally resolution पास  करती है  कि, हमें भाजपा को, राम मंदिर movement को, हिंदुत्व को counter करने के लिए एक तो गाँधीजी का, और एक भक्ति movement का, I quote, “we have to use these.”  हमें इनका इस्तेमाल literally हथियार के रूप में करना पड़ेगा |  तब से Left भी गाँधीजी के मुरीदों में, उनके प्रशंसकों में, उनके डंडे के रूप में हिन्दुओं को पीटने के लिए केवल गाँधीजी का इस्तेमाल किया गया |गाँधीजी  और भक्ति movement,  ये ​दोनों इक्कठे हुए जब राम-मंदिर एक चरम सीमा पर पहुँच गई |  

यह केवल Attenborough से मानने वाले नहीं थे, you are right.  It made a very important floor.  परन्तु we know कांग्रेसी तब तक भी विदेशों में पुतले सजाने के लिए ठीक थे गाँधीजी, पर उनको seriously लेना, उनके किसी भी विचारोंको मानने वाले नहीं थे | Nehru himself used to treat Mahatma Gandhi as a crank and he wrote insulting letters.  

पर यह ​जो Left ने आकर जो गाँधीजी का एक नया अवतार पेश किया, वह केवल भाजपा को और  हिन्दुओं को, जो हिन्दुओं का एक नई awareness, एक नई चेतना, एक राम-मंदिर के साथ जगी थी, उसको crush करने के लिए किया गया | यह ​मेरे खुद  कि खुद  की  देखि हुई | मैंने इसपे एक article भी लिखा था  कि आप भक्ति को इस्तेमाल नहीं कर सकते as a weapon. भक्ति तो आपके दिल में होनी चाहिए, जो आपको सिर्फ divine से ही नहीं जोड़ती, दूसरों से भी उसी प्यार के बंधन में जोड़ती है | तो गाँधीजी और भक्ति, ऐसे Left के favorite बन गए | 

अब आप बताइए शंकरजी, आपको क्या लगता है ?  यह ​गाँधीजी का पुनर्जन्म, या उनका एक mythification strong हुआ है पिछले कुछ दशकों में, इसके पीछे क्या ताकतें हैं ?  हमारा क्यूँ मोह-भंग है  कि हम झेल नहीं पा रहे हैं ​इस गाँधीजी के legacy को ? 

Shankar Saran: मेरा थोड़ा सा भिन्न विचार है और मैं यह ​महसूस करता हूं  कि मैं Soviet इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं | Lenin, Stalin, और पूरा जो Soviet literature हुआ करता था 70s  का upto Soviet collapse, लगभग 20 सालों का मेरे पास सैकड़ों literature थे और अभी भी एकाध-सौ होंगे |  मैं महसूस करता हूं  कि जिस तरह से Lenin  की, फिर Stalin की,  फिर Brezhnev और Stalin की जो राजकीय​​ प्रचार है, सुबह से शाम तक बारहों महीने, चौबीस घंटे,  हर जगह Lenin मार्ग, Lenin building, Lenin अस्पताल, Lenin chowk, Lenin Library, Lenin योजना, वैसे वह जो गाँधीजी और नेहरुजी का किया गया है इसका सबसे बड़ा दोश है | 

और वह जो सुशिलजी ने कहा, आप बचपन से लेकर के आप स्कूल न भी जाएं, तब भी आपको सैकड़ों जगह गाँधी जी  की तस्वीर, गाँधीजी का नाम State चला रही है | पहले नेहरुजी की भी थी | उसमे और इसका प्रमाण मैं देखता हूं  कि आज चूँकि 7-8 सालों से नेहरुजी गायब हो गए हैं |  मुझे लगता है  कि एक डेढ़-सौवी या दो-सौवी एक Committee बनी थी;  उस कि meeting तक नहीं हुई | मतलब State ने नेहरुजी को छोड़ दिया, नेहरु का नाम लेने वाला कोई नहीं है |  चूँकि State गाँधीजी को चला रही है, मुख्य कारण यही है |  जहाँ तक मोह-भंग  की बात है, गाँधीजीके राजनितिक पदार्पण के 2 साल के अंदर ही बार-बार और बहुत तीखा देश का  मोह-भंग हुआ है | 

ख़लिफत के बाद जो उनकी दुर्गति थी, वह उनके अपने लेखन से ही पता चलती है | लेकिन यह ​42’ के बाद उन्होंने 43’ तक जो भूमिका निभाई और उसको फिर इन्होने betray किया जिसको सीताराम गोएल ने कहा है ‘Greatest betrayal in history’; यह ​किसी छोटे-मोटे आदमी का नहीं, यह ​N. V. Gadgil, जो Congress के leader थे और नेहरु Cabinet में थे,  उनका लिखा हुआ है | उन्होंने कहा  कि जब देश-विभाजन  की  बात तेज होने लगी तो सावरकर सामने आए और कहा  कि हम देश को बटने नहीं देंगे | तो, according to Gadgil, लोगों का आकर्षण सावरकर की ओर होने लगा | उसको cut करने के लिए गाँधीजी  ने यह ​बयान दिया जब तक मैं जिन्दा हूं पाकिस्तान नहीं बनेगा | 

 यह ​अनुमान से वह कहते हैं   और यह ​गुरुदत्त  की किताब में quoted है,  भारत: नेहरु गाँधी  की छाया में |  उसमे पुरे details, references के साथ हैं | उनका कहना है  कि गाँधीजी  का कोई idea कभी नहीं था विभाजन के लिए लड़ने का, लेकिन जब उन्होंने देखा  कि Congress की leadership के पैर के निचे से मिटटी खिसक रही है और लोग सावरकर  की ओर जा रहे हैं, तब उन्होंने ऐसा बयान दिया | तो, इस तरह से उन्होंने Congress  की leadership secure कर ली | 

लेकिन जब actually Partition मान लिया नेहरु, पटेल, और Mountbatten ने तीनो मिल कर के,  तो गाँधीजी  उसमे चुप भी नहीं रहे और  वे Congress Working Committee में नेहरुजी  की मदद करने आए, और यह ​भी उसमे है | और मेरे ख्याल से कोई सिन्धी सदस्य थे Working Committee में जिन्होंने इतना moving भाषण दिया  कि पुरे सिंध के हिन्दुओं को आप भेड़-बकरी  की तरह कटने के लिए छोड़ दे रहे हैं |

It was almost certain  कि Working Committee Partition को नहीं मानती |  तब आदमी भेजा गया गाँधीजी  को पकड़ के लाने  और उनको Kingsway Camp से लाया गया |  Constitution Club में meeting हो रही थी Working Committee  की दिल्लीमें और वहाँ  गाँधीजी  ने उलटे-सीधे तर्क देकर के लोगों को तैयार किया  कि तुम Partition मान लो | मैंने खुद पढ़ा है जो उनकी विचित्र भाषा थी, गाँधीजी की,  मिटटी से सोना निकालना चाहिए, और आप Partition नहीं मानेंगे तो आप जिन्नाह  की  बात को सही साबित कर देंगे | गाँधीजी  Working Committee को बोल रहे हैं  कि अगर आप नहीं मानेंगे तो Two Nation theory सही हो जाएगी |

That is quintessential Gandhi, Classical Gandhi.  और ऐसे मैंने दो किताबें लिखी हैं गाँधीजी पर |  उनकी essential धारणाओं पर, मैं ऐसे सैकड़ों उदाहरण list बना कर दे सकता हूं, गाँधीजी के writing से और क्रियाकलापों से | Anyway, मैं यह ​कह रहा था  कि that was the Greatest betrayal in human history. उन्होंने पंजाब, कश्मीर और बंगाल में लाखों-लाख हिन्दुओं को जिहादियों के हाथों मरने छोड़ दिया to that extent  कि 15 August 1947 को पंजाब के असंख्य गाँव थे जिनको नहीं मालूम था  कि वे पाकिस्तान में है या हिंदुस्तान में | इतनी लापरवाही से और  स्वयं British commander ने लिखा है  कि यह ​आपलोग क्या कर रहे हैं ? इसको silent रखिये, सारा division पहले आपलोग finalize कर दीजिए, army, population, property सबका व्यवस्था  कीजिये तब announce  कीजिये

लेकिन यह ​सारे लोग जितने अधीर थे Mountbatten और साथ में हमारा सारा leadership , नेहरु जी especially, लेकिन पटेल, गाँधी, सब क्यूंकि इन सारे लोगों ने एक क्षण के लिए भी पंजाब, सिंध, कश्मीर, और बंगाल के हिन्दुओं के बारे में नहीं सोचा | तो, वे जो सिन्धी सज्जन भाषण दे रहे थे Working Committee में, उनका भाषण ऐसा था  कि उनको मंजूर नहीं होता | गाँधीजी आकर के उन्होंने मंजूर करवाया, सबको चुप कर के, उलटे-सीधे तर्क दे कर के | यह ​ Greatest betrayal of history के बाद  उनकी जो प्रतिष्ठा गिरी थी उस की हम कल्पना नहीं कर सकते | मुझे एक पुराने गाँधीवादी ने बताया  कि गाँधीजी  की प्रार्थना सभा में उनके सामने लोग कहते थे  कि बुड्ढे तू मर क्यूँ नहीं जाता?

Madhu Kishwar: यह ​मेरी माँ भी बताती हैं |

Shankar Saran: तो यह ​सारी चीज़ें blackout कर दी गई हैं | मैं सबसे बड़ा कारण यही मानता हूं अपने Soviet अध्यन के आधार पर  कि जिस तरह से Lenin के बारे में, Stalin के बारे में, उनकी policies के बारे में , उनकी शिक्षा के बारे में, मतलब हज़ारों चीज़ के बारे में जो पूरी तरह एक नकली इतिहास अपने समाज का और दुनिया का और नेताओं का,  यह जो किया गया है यही ​सबसे बड़ा role है | 

और यह ​आपने ठीक कहा | उनकी जो हत्या हुई,  ​उससे golden opportunity मिल गई, जिससे नेहरुजी ने, कांग्रेस ने उनको एक position दिया;  वैसे पहले से ही एक उनका demi-god जैसा रूप था | जिसपर  N. C. Chowdhary ने लिखा भी है  कि वह जो उनका साधू और महात्मा वाला dress था, उनकी रहस्यमई किस्म  की भाषा थी बल्कि उटपटांग भाषा थी जिसके बारे में लोग मान लेते हैं  कि यह ​इतनी उटपटांग बात है  कि इसमें कोई गहरी बात है, हम नहीं समझ सकते | तो इन सब चीज़ों का एक मिला-जुला असर पड़ा जिससे सम्मोहन जबरन बनाया गया है जैसे Lenin  का बना हुआ था, Stalin का बना हुआ था |  मैंने पढ़ा है  कि जिस दिन Stalin  की  मृत्यु हुई और दुसरे दिन Soviet radio में उसका प्रसारण हुआ दो दिन के बाद, तो पुरे रूस में, सोवियत संघ में हज़ारो लोग जार-जार रो रहे थे, मतलब Stalin की ऐसी तस्वीर थी | वह एक Greatest criminal of history था, और लोगों को मालूम ही नहीं था | 

हमें भी गाँधीजी के बारे में, उनकी policies के बारे में, उनके knowledge के बारे में, उनके क्रियाकलापों के बारे में, उनकी राजनीति के बारे में, उनके निजी जीवन के बारे में और उनके उटपटांग राजनितिक कामो के बारे में, एकदम right from the beginning to one month before his death मालूम ही नहीं था |  Koenraad Elst ने अच्छी किताब लिखी है उस की analysis करते हुए, Godse  वाली speech  की analysis करते हुए | गाँधीजी का उन्होंने बढ़िया मूल्यांकन किया हुआ है | वे कहते हैं  कि जिस तरह से गाँधीजी  की स्तिथि अंत-अंत तक थी, वे बहुत peculiar थे | वे कहते हैं  कि गाँधी जो के assassination से ही उनको यह ​aura मिला जिससे हम अभिभूत हैं और दुनिया में भी उनका अभिभूत बनाया गया |  मैं समझता हूं  कि कुछ तो उनका western machination भी है चाहें Church का हो या किसी का हो, तो वे जान बूझ  कर के ऐसे लोगों को हमारे ideal बनाते हैं जिससे उन्हें लाभ हो और हमें हानि हो |

यह एक section है, सारा west ऐसा नहीं है लेकिन एक section है | Koenraad यह ​भी कहते हैं  कि अगर वह assassination नहीं होता तो it was possible  कि भारत  की और हानि होने वाली थी | वे कहते हैं  कि उसका दो positive पक्ष हैं :  एक तो यह ​ कि इतना बड़ा disaster हुआ, लाखों-लाख हिन्दू मारे ही नहीं गए, भारत का विभाजन हुआ,  जो पुरे इतिहास में नहीं हुआ था | औरंगजेब, Ghaznavi, Ghazni, मीर कासिम, एक से एक brutal लोग आए;  एक साधारण सीख से किसान ने मेरा इस बात पर ध्यान दिलाया और यह ​बहुत रोचक बात है; वे कहते हैं  कि यह ​Partition मान कर के स्थाई रूप से भारत को तोड़ दिया गया, जबकि अगर Partition नहीं माना गया होता तो  भारत फिर से हिन्दू land हो जाता |  बड़े-बड़े इस्लामी योद्धा  आए, जिन्होंने पूरा का पूरा लाशें बिछा दीं, पूरा का पूरा मैदान हिन्दू लाशों से भर दिया, लेकिन after 10 years  लोग फिर से हिन्दू land हो गए | ऐसा कई बार हुआ है |  

तो यह ​हमने अपने हाथों से भारत का एक-तिहाई हिस्सा भारत से सदा के लिए अलग कर दिया | तो इतना बड़ा काण्ड करने के बाद अगर कोई punishment किसी को नहीं मिलता तो यह ​भी हिन्दू जाती और भारत के लिए अच्छा message नहीं होता | यह Koenraad  का कहना है | एक विदेशी का कहना है | और वे यहाँ तक कहते हैं  कि कुछ दिन पहले तक, और यह ​तक recorded  है  कि निज़ाम के Secretary उनसे मिलने आए थे और उनका कहना था  कि आप हस्तक्षेप  कीजियह और हमें स्वतंत्र रहने दीजिए | और गाँधीजी का record है 1917 से ही, khalifat से ही  कि अगर इस्लामिक demand हो, कितनी भी stupid हो, कितनी भी भयंकर हो, वे उसको मानने के लिए तैयार रहते थे | तो, according to Koenraad, यह ​possible है  कि अगर वे रहते तो Hyderabad, यानी आज का आंध्र-प्रदेश कश्मीर जैसा problem बन जाता | और वह भी समुन्द्र के पास है, तो कश्मीर  की तरह नहीं है ; वह ज्यादा मजबूत स्तिथि में होता | 

मैं वहाँ  पे आना चाहता हूं  कि एक तो उनकी जो महिमा बनी हुई है, वह पूरी  कि पूरी state propaganda है | उनके नाम पर, उनके जन्मदिन पर programme, कोई विदेशी आए तो वहाँ  पे जाना, बात-बात पे उनका नाम लेना, उनके नाम पे योजनाए चलाना, उनके नाम से हज़ारों चीज़ करना, उनकी ज़बरजस्ती photo आपको दिखाना,  तो मैं समझता हूं  कि यह ​Communist देशों का ही नक़ल है | Soviet union, China, North Korea, इनको छोड़ कर के पूरी दुनिया में, democratic world में, किसी भी leader का चाहें वह कितना भी महान क्यूँ न हो, Reagan क्यूँ न हो, Margaret Thatcher क्यूँ न हो, Churchill क्यूँ न हो, किसी को इस तरह से प्रचार नहीं किया जाता | यह ​100% Soviet model है, हमारे देश में | 

मेरे एक मित्र, जिनका Russia का एक बहुत लम्बा अनुभव है for decades,  कहते हैं  कि यह ​Communist शासन है in a democratic form  और बहुत सी चीज़ें वे गिनाते हैं, यह ​हूबहू वैसा ही चल रहा है जैसा Russia में | और मैं समझता हूं  कि यही कारण है हमारा मोह भंग का |   मैं समझता हूं  कि यह ​मोह भंग बार-बार देश का हुआ | लेकिन कुछ नेताओं ने,  कुछ पश्चिमी लोगों ने, और फिर गाँधीजी के लोकतंत्र वाले जो ड्रामे, तीनो चीज़ें मिल कर के हमें एक असहाय बना के रखा हैं | 

यह ​latest मोह भंग है, इसका श्रेय तो मैं इस open media को दूंगा,  जिसके माध्यम से लोग check कर सकते हैं, सारे facts, सारे दस्तावेज, सारे photos, debates, everything.  जितनी बातें मैं कह रहा हूं और जो गाँधीजी के Works से मैंने ली हैं अपने दोनों किताबों में ब्रम्हचर्य वाले ने और अहिंसा वाले ने सब की  सब मैंने उनके Collected  Works से ली हैं  जो freely available है | कहीं नहीं जाना है आपको | अपने mobile पर, internet पर search  किजियह और वह बहुत बढ़िया वेबसाइट है | Year-wise सारा वर्क available है |

तो इसके कारण यह ​मोह-भंग नए सिरे से हो रहा है |  लेकिन यह ​मोह-भंग बार-बार हुआ | हमारे नेताओं ने, हमारी politics में, हमारी political parties ने और कुछ हद तक विदेशियों ने, यह ​जान बूझ  के उनकी image बनाए रखी है ऐसी | मैं एक reference दे सकता हूं बहुत बड़े आदमी का, George Orwell.  उन्होंने 1949 में लिखी है, ‘Reflections on Gandhi’, चार या छह page का article है |  उसमे उन्होंने लिखा है  कि British हमेशा गाँधीजी को अपना आदमी मानते थे | 

Madhu Kishwar: शंकरजी थोडा विस्तार से बोलिए, यह ​बहुत लोगों का मानना है और इसपे evidence भी आ रहा है | Do you agree  कि गाँधीजी को अफ्रीका से यहाँ आके plant किया गया freedom movement में ? ताकि जो एक नये विद्रोह  की भावना जग रही थी 1905  में,  Partition जो किया अंग्रेजों ने,  उन्हें रद्द करना पड़ा क्यूंकि बंगाली किस तरह उठ खड़े हुए | ऐसा कभी इससे पहले नहीं हुआ  कि अंग्रेज़ी हुकूमत कोई एक इतना बड़ा decision ले और उनको रद्द करना पड़ा | और जिस तरह से बंगाल में revolutionary upsurge जिसे कहते हैं उसको भी ठंडा करना था, दिल्ली capital ले आए ताकि बंगाल का influence कम हो जाए, और फिर बापू  M. K.  Gandhi को अफ्रीका से लाके Congress  ऊपर कब्ज़ा हो जाता है | Do you also accept that  कि अंग्रेजों  की थोड़ी मिली भगत थी इससे? 

Shankar Saran: इसपे मैंने research नहीं किया है | और उसपर मुझे hard evidence नहीं मिला है | लेकिन ऐसा कई बार सुनने में आता है  कि जब गाँधीजी वहाँ  से चले तो वे काफी लम्बे समय तक Britain में रुक के आए थे और लोग कहते हैं  कि उनको tutor किया गया था | मुझे लगता है  कि गाँधीजी  की जो writings मैंने पढ़ी हैं और उनकी आत्मकथा में ही आधे से ज्यादा उनका पूरा character, उनकी personality, उनकी आत्मकथा में ही मिल जाता है | और वह आत्मकथा 1923-24  में लिखी है | और बाकि जो उनके बारे में जानकारियां हैं उनको मिला करके देख कर  मुझे लगता है  कि tutor करने  कि उनको जरुरत ही नहीं थी | वे तो घोषित रूप से अपने आप को कहते थे  कि मैं राज-भक्त हूं | उन्होंने हिन्द-स्वराज में लिखा है |

Madhu Kishwar: Loyal citizen of the British empire.

Shankar Saran: Upto almost 1921, जो उस ज़माने में पुरुषों   की average full आयु भारत  में 50 वर्ष थी, और गाँधीजी उस समय 50 वर्ष पुरे कर चुके थे, तब उन्होंने कहा था  कि मैं British साम्राज्य का राज-भक्त हूं ;  राज-भक्त उनके अपने शब्द हैं | हिन्द-स्वराज में उन्होंने लिख करके कहा है  कि अंग्रेजों को यहाँ से जानेकी कोई जरुरत नहीं है ;  वे यहाँ से शासन करते रह सकते हैं, सिर्फ उनको दो-काम करने चाहिए :  एक तो गाय का मांस खाना छोड़ दें, pork खाना छोड़ दें, और उसके बाद यह ​जो पैसे ले जाते हैं, वह थोड़ा कम कर दें | उन्होंने कहा हैं  कि वे यहाँ रह सकते हैं permanently. 

शासन करने को ही वे  समझते थे  कि वह​ बहुत ही तुच्छ काम है, तुम्ही को करना है,  तुम्ही करो |शासन करनेको उन्होंने बहुत derogatory कहते थे | यह ​गाँधीजी थे | तो उनको tutor  करने   की क्या जरुरत थी ? Already उनको दो-दो, तीन-तीन medal मिल चुके थे British साम्राज्यसे |  और इस मामलेमें मुझे लगता है  कि अगर वे scheming थे, तो उनकी बोली में, उनके लिखने में वह दीखता नहीं है | सारी बातें, जितनी मैं बोल रहा हूं, ये सब उनके written में evidence मिल जाते हैं | यह ​पक्की बात है  कि जब से वे आए तबसे उन्होंने भारतीय राजनीति में एक से एक जिसको कह सकते हैं  कि विवेकहीन, common sense विरोधी, और हिन्दू-विरोधी किये, उनका उद्देश्य, उनको नीयत चाहें जो भी रही हो |

 नीयत तो Lenin  की  भी अच्छी थी, नीयत तो Mao  की  भी अच्छी थी जिन्होंने अपने ही देश के दो-दो, तीन-तीन करोड़ लोगों को मारा | तो, नीयत से कुछ नहीं होता है, राजनीति में कथनी से कोई मतलब नहीं है, करनी से और result ने जो दिया है उससे उसका मूल्यांकन होता है |

Again मैं कहूँगा  कि Communist देशों के अलावा, भारत के अलावा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ पर लगातार इतनी failure के बाद भी कोई Political Leader politics में बचा रहे | यह ​हो ही नहीं सकता  ​एक बड़े failure के बाद, एक बड़े disaster के बाद;  एक छोटे से scandal के बाद में यूरोप, अमेरिका में एक politician का career ख़तम हो जाता है | और गाँधीजी ने 1934 में स्वयं माना महादेव देसाई के सामने  कि ख़लिफत में जो उन्होंने किया वह हिन्दुओं के साथ विश्वासघात था | और वे खुद अपनी भाषा में बोलते हैं  कि कितने मंदिर तोड़े गए, कितनी स्त्रियों का सतीत लुटा गया, कितने बच्चों के साथ दुराचार किया गया मुसलमानों के द्वारा ; और मैं कैसे किस मुह से उनके सामने जाके कहूँगा  कि तुम वही करो, लेकिन मैं फिर वही कहूँगा | Exactly यह ​ वे करते रहे | 

Madhu Kishwar: यह ​जो सवाल मेरा आने वाला था  कि सत्य और अहिंसा  की कसौटी पर क्या गाँधीजी कभी भी, किसी भी phase में खरे उतरे ? सत्य और अहिंसा दोनों, जो उनकी litmus test बन गए थे और calling card. उनके Mahatma-hood का सबसे बड़ा certification था |

Shankar Saran: ब्रम्हचर्य भी | उन्होंने कहा  कि मेरे हर काम  की तीन कसौटी है, सत्य, अहिंसा और ब्रम्हचर्य | 

Madhu Kishwar: ब्रम्हचर्य की नौटंकी छोड़िये |  मतलब मरते दम तक यह ​व्यक्ति sexually unrestful रहा |  इतना उबाल, इतने बड़े-बड़े हादसे हो रहे हैं, Partition हो रहा है, लाखों कट रहे हैं, लाखों मर रहे हैं,  और गाँधीजी क्या कर रहे हैं ?  जवान teenagers के साथ नग्न अवस्था में यह ​check करने के लिए सो रहे हैं  कि मैं अपने sexual urges को conquer कर पाया  की नहीं | तो इसका मतलब ब्रम्हचर्य क्या हुआ? ब्रम्हचर्य तो तब होता है जब आप इससे ऊपर उठ जाते हैं |

Shankar Saran: नहीं मैं सिर्फ इसपे कह रहा था  कि उन्होंने कहा था  कि दो नहीं तीन कसौटियां हैं मेरे सारे कामो  की :  सत्य, अहिंसा और ब्रम्हचर्य | 

Madhu Kishwar: हाँ कहा था | मगर सत्य और अहिंसा पे तो हम बात भी कर सकते हैं | मैंने किसी ज़माने में जब मैंने Gandhian Women लिखी तो उसमे मैंने यह ​लिखा  कि गाँधीजी इस विचारधारा से प्रभावित थे | जैसे हमारे इतने बड़े-बड़े ऋषि हुए हैं, उनकी तपस्या करते हैं तो इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है | यह ​कितने हमारे legendary कहानियाँ हैं न ऐसी | तो, अप्सरा भेजी जाती है उनकी तपस्या भंग करने के लिए | क्यूंकि otherwise वे देवताओं से भी ज्यादा powerful हो जाएंगे |  गाँधीजी का यह ​मानना था  कि जो व्यक्ति पूरी तरह से अपनी ब्रम्हचर्य में सिद्ध होता है, तो देवता भी उनके आगे, या सारी कायनात जुड़ जाती है उनको deliver करने के लिए, उनकी मनमर्जी का result | 

तो यह ​मैंने उस वक़्त ऐसा spin दिया क्यूंकि समझ नहीं आती थी | Otherwise, how do you explain ?  यहाँ slaughter हो रही है, अच्छे-भले आदमी  की sexual urge ख़तम हो जाए | अगर दंगे-फसाद, लोग मर रहे हैं, लाखों  की संख्या में लोग उजड़ के आ रहे हैं, mass rapes हो रही है, abductions हो रहे हैं, क्या नहीं हुआ? और वह आदमी अभी भी अपने sexual urges से ही जूझे जा रहा था | यह ​कैसा महाभारत था ? और सारी जिंदगी रहा |

ब्रम्हचर्य का उन्होंने प्रण तो ले लिए परन्तु he could never come to terms with his sexuality.  ब्रम्हचर्यकी बात तो किसी दिन और करेंगे | मैंने बहुत कोशिश  की इसको sympathetically समझने  की | पर अब मन नहीं करता, बहुत हो गया | सुशिलजी आप बताइए, सत्य और अहिंसा  की शुरू से  कीजिये जब  वे अपने public life में आते हैं | कब सत्य और अहिंसा  की कसौटी पे गाँधीजी खरे उतरे?

Sushil Pandit: देखिये मैं शंकरजी को बहुत ध्यान से सुन रहा था  कि गाँधीजी कैसे British Raj के हिमायती रहे, उसके समर्थक रहे, उसके प्रशंसक रहे | और सत्यता अगर कसौटी है तो यहाँ फिर आप प्रपंच कर रहे हैं स्वाधीनता का, लोगों को संगठित करने का, असहयोग आन्दोलन चलाने का तो यह ​दोनों बातें टिकती नहीं हैं | उनका अपना निजी अनुभव है जो आपको बताएगा  कि वे British सरकार के कितने करीब थे |

मुझे कुछ वर्ष पूर्व बेलगाम जाने का अवसर मिला | एक शैक्षणिक संसथान है, उन्होंने अपनी सौवी वर्ष-गाँठ के लिए अपने जो कार्यक्रम रखे थे, उसमे आमंत्रित किया था | और मैंने इच्छा व्यक्त  की  कि मैं बेलगाम  की कुछ विशेष स्थान जाकर देखना चाहूँगा, मैं पहली बार गया था | तो एक बार शहर के बीचो-बीच गुज़रते हुए उन्होंने कहा  कि इसको Congress Road कहते हैं | मैंने कहा  कि मैं आज तक कई जगह घुमा हूं देश के, मुझे कहीं भी Congress Road नहीं दिखाई पड़ी | तो यहाँ Congress Road कैसे है?

तो उन्होंने कहा  कि यहाँ Congress Road 80 वर्ष पहले घोषित किया गया था क्यूंकि 1924 में यहाँ Congress का अधिवेषण हुआ था | और यह ​वह अधिवेषण है जिसमे महात्मा गाँधीजी Congress के अध्यक्ष चुने गए थे | मैंने कहा  कि मैं वह अधिवेषण स्थल देखना चाहूँगा | तो वह unscheduled एक stop था |  हम वहाँ  चले गए |और वहाँ  उन्होंने एक संघ्राहालय, एक अभिलेखाघर बनाया है, चित्रों  की एक प्रस्तुति है, वह पूरा स्थल है | तो, मैंने वहाँ  लगभग घंटा-दो घंटा बिताए | वहाँ  चित्र देखे तो एक चित्र में लिखा हुआ था, 1924 में ही बेलगाम में rail आई और पहला railway station बना | तो मैंने उसकी थोड़ी और जानकारी प्राप्त  की तो पता चला  कि यह ​उस अधिवेषण के लिए ही railway station बनाया गया और रेल  की पटरी बनाई गई, ताकि डेढ़ भर से जो Congress के delegates आने थे इस अधिवेषण में, उनको आने में सुविधा हो और सरकार ने, अँगरेज़ हुकूमत ने, उस अधिवेषण का आयोजन करने में इतनी बड़ी धनराशी खर्च  की और इतना ताम-झाम किया | विशेषकर इसलिए, मेरे ख़याल से उसके पहले मुहम्मद अली थे कांग्रेस के अध्यक्ष और उनसे अध्यक्षता लेनी थी कांग्रेस  की | और गाँधीजी पहली बार कांग्रेस का अध्यक्ष बन्ने जा रहे थे | 

अगर Congress party असहयोग आन्दोलन चलाती है, अँगरेज़ हुकूमत के विरुद्ध, भारत का जनमत बनाती है, संगठन करती है, तो अँगरेज़ हुकूमत को क्या पड़ी थी यह ​सब करने  कि? लेकिन उन्होंने किया | हम सबूत ढूंढते हैं न  कि अँगरेज़ का गाँधीजी से क्या रिश्ता था ? और अँगरेज़ गाँधीजी के लिए क्या-क्या करते थे ? तो Congress में ही जो धारा चल रही थी, जिसका लाला लाजपत राय प्रतिनिधित्व करते थे, जिसका बिपिन चंद्रपाल प्रतिनिधित्व करते थे, जिसका बल गंगाधर तिलक प्रतिनिधित्व करते थे, उस धारा को कुंठित करने के लिए, उसकी धार कम करने के लिए, उसको delegitimize करने के लिए एक सामानांतर धारा चलाई गई, जो समन्वय  की धारा थी | जो विरोध  की नहीं थी, संघर्ष की नहीं थी, समन्वय  की धारा थी | और उसका प्रतिनिधित्व गाँधीजी करते थे | यह ​तो कांग्रेस के अंदर चलती हुई धारा का हाल है | 

तो कांग्रेस के बाहर जो क्रांतिकारी आन्दोलन चल रहा था, जो अनुशीलन समिति थी, जो हिंसक जवाब देना चाहते थे देश को, उनकी हिंसा का, उनकी संस्थागत हिंसा का, उसकी बात क्या  किजियेगा? Buffer थे, गाँधीजी कांग्रेस का, अँगरेज़ का हथियार बन कर के, एक गुप्त शश्त्र बन कर के निकले | और इसके यह ​प्रमाण छितरे हुए हैं | गाँधीजी का Quit India movement.  यह ​जो जवाबी आन्दोलन चलाते थे, आपने कहा  कि वीर सावरकर के कहने पर, फिर उन्होंने कहा  कि विभाजन के विरुद्ध​ में भी position लेना,  इसी गाँधीजी का भारत छोड़ो आन्दोलन सुभाष चन्द्र बोस  की बढती महत्वता का और उनके अभियान को मिलती सफलता को पुन्न करने के लिए छेड़ा गया जो दस दिन के अंदर टाय-टाय फीस हो गया | लेकिन सुभाष चन्द्र बोस  की आज़ाद हिन्द फौज के अभियान को कहाँ रखा गया है और Quit India movement को हम कहाँ रखते हैं?

गाँधीजी, भारत के तथाकथित स्वतंत्रता के बाद  की औपनिवेशिक ताकतों का उसी अंग्रेजी साम्राज्य का जो अभी अफ्रीका में फल-फुल रहा था 1947 के बाद, उन्होंने गाँधीजी को एक उदाहरण के रूप में promote किया  कि यदि आपको औपनिवेशिक शासन से कुछ परेशानी है तो यह ​गाँधीजी का रास्ता है, यह ​अपनाइए ताकि वह उसको perpetuate  कर सकें | तो अगर अफ्रीका में हिंसक आन्दोलनों की सुगबुगाहट शुरू हुई तो उसपर पानी डालने का काम औपनिवेशिक सत्ता ने गाँधीजी को आगे कर के किया | इससे समझ सकते हैं  कि गाँधी कितने कामगार थे, कितने कारगर थे औपनिवेशिक शासन में |

सत्यता  की कसौटी और यहाँ इस तरह  की मिली भगत कहाँ मेल खाते हैं | कितने-कितने अवसर आए जब गाँधीजी ने सुभाष बोस का Congress का अध्यक्ष बनना और फिर उपरी कांग्रेस के नेतृत्व को उनके साथ सहयोग करने के लिए उकसाना,  उनको अपनी team तक नहीं बनाने देना | उनके कामो में रोड़े अटकाना, उनके प्रत्यक्ष विरोश के बावजूद जब सुभाष बोस जीतते हैं, मुह फुला के घर बैठ जाना | यह ​कौन सी सत्यता की कसौटी थी जिसपर  वे चल रहे थे ?

तो गाँधीजी ने समय-समय पर, बहुत crucial phase में, उन क्षणों में जब जीवन-मरण के फैसले हो सकते थे, जब इतिहास बदलने वाले क्षण आते थे, तब जो उनकी भूमिका थी, उनका मूल्यांकन होना चाहिए | 

Madhu Kishwar: मैं यह ​कह रही हूं  कि किसी ज़माने में जब मेरी आँखें गाँधीजी के चका-चौंध halo से थी, तो हम सोचते थे  कि गाँधीजी इसलिए महान थे, unlike Nehru, गाँधीजी सत्ता में कभी आने  की इच्छा नहीं  किया | जो पंजाबी refugees  पाकिस्तान से उजड़े जो लोग आए थे, उनके दिमाग में यह ​बहुत बात घर कर गई थी  कि नेहरुजी ने प्रधानमंत्री बन्ने  की जल्दबाजी में Partition को कहा  कि जल्दी करो-जल्दी करो | या जैसे अम्बेदकर ने कहा कि population  की peaceful transfer  की बात करो, वह भी परवाह नहीं  की | न गाँधी ने, न नेहरु ने, न पटेल ने | क्यूंकि जल्दी सत्ता में आना चाहते थे नेहरु | तो हम सोचते थे, मेरा जो idealistic young mind था,  कि देखो गाँधीजी सत्ता में कभी आने  की इच्छा नहीं की, president भी नहीं बनना चाहते थे, यदि  वे चाहते तो  वे Prime Minister बन सकते थे, उन्होंने वह भी नहीं किया | यह ​मेरा naïve बचपन का जो image था, और यह ​लगता था त्याग  की भावना है | 

पर फिर समझ आई  कि यह ​चुनाव से इसलिए डरते थे, क्यूंकि मालूम था  कि अगर free चुनाव होता है, और secret ballot का, तो दस वोट नहीं मिलने वाली, चार भी न मिलें | इनकी पत्नी की भी शायद न मिलती इन्हें,  कि हाँ इनको leadership दे दो, जो इनके कार्य्कलापे होते थे | तो, यह ​जो image है  कि power hungry नहीं थे, यह image गलत है | जैसे सोनिया गाँधीजी हैं |  पुरे कांग्रेस को कटपुतली बना के नचाती हैं और प्रधानमंत्री नहीं बन पाई क्यूंकि उनको मालूम है  कि वहाँ  मात खा जाएंगी | परन्तु मालूम है  कि कैसे manage करना है, puppet  बना के रखना है पूरी अपनी organization को, तो जैसे सोनियाजी ने कांग्रेस तबाह कर डाली, गाँधीजी ने खुद भी कोई कमी तो नहीं छोड़ी थी, देश ही तबाह कर डाला, सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं | तो, शंकरजी आप क्या कहेंगे इस सत्य और अहिंसा के मूर्ति के बारे में ? 

Shankar Saran: सुशिलजी ने दो-तीन बहुत महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिलाया जिसपर मेरा ध्यान नहीं गया था | और मैं मानता हूं  कि अगर मेरा नहीं गया था तो देश में लाखों लाख जो सतर्क लोग थे, उनका भी नहीं गया था | यह ​बहुत अच्छा प्रमाण उन्होंने दो या तीन दिया, तो मैं तो यही समझता हूं  कि उनके क्रिया कलाप और उनके विचार परीक्षा वगैरह में होता है  कि जब आप किसी  की copy जाचते थे तो उसमे code रहता है, यह ​नहीं पता चलता  कि यह ​किसकी copy है | मैं उस ज़माने  की बात कर रहा हूं, जब written answer होते थे,  objective type वाला नहीं, A,B,C नहीं | आपको पूरा detail में answer लिखना है | तो अगर गाँधीजी का, नेहरुजी का नाम हटा दिया जाए, पटेल का, सुभाष का और इन्होने exactly जो-जो किये, जो-जो कहा उसको  A,B,C,D कर के रखा जाए, तो गाँधीजी के नाम पर आप जो भी quote रखें, D या C, उसको लोग किसी भी हालत में pass marks नहीं दे सकते | उसको किसी भी हालत में सत्य, अहिंसा और अच्छे politician  की उपाधि नहीं  दे सकते | लेकिन, चूँकि जो पहले मैंने कहा, एक state propaganda consistently बनाया गया और जैसा अभी सुशिलजी ने बहुत प्रमाणिक रूप से कहा,  कि उसके पीछे western power, especially British power लगी हुई थी, उनकी image बनाने में | 

फिर हमारे अपने लोग : गाँधीजी को  जहाँ से भी idea आया हो, उन्होंने जो वर्दी पहनली, उससे एक mesmerization बनाते गए | स्वतंत्र भारत में, जो British time में भी नहीं हुई थी,  हमने systematically पुरे इतिहास को falsify करके बच्चों को, युवाओं को पढ़ाया है | 

मैंने अभी दो साल पहले एक प्रदर्शनी देखि जो एक educational campus में लगी थी | वह 1920 वाले असहयोग आन्दोलन पर थी | उस प्रदर्शनीमें ख़लिफत आन्दोलन का ज़िक्र नहीं किया गया था | Like it never happened!

Madhu Kishwar: जिसको आप ख़लिफत आन्दोलन कहते हैं उसको भी तो  First Non-Cooperation movement का नाम दे दिया गया न ? और Non-Cooperation किसके साथ थी ? क्यूँ थी ? और काहे को थी? असल में Turkey में लोग नहीं चाहते हैं हुकूमत को;   वे हटाते हैं, टर्की के लोग हटाते हैं |  गाँधीजी उठ खड़े होते हैं  कि नहीं,  मुझे खलीफा चाहिए और यहाँ नौटंकी करते हैं | यह ​अंग्रेजों के साथ भारत में असहयोग आन्दोलन है जिसका कि कोई तुक, कोई logic है ही नहीं | 

Shankar Saran: वह तो उस समय था | लेकिन अभी जो कमसेकम तीन पीढ़ियों से जो शिक्षा चल रही है, तीन पीढ़ियों के लोगों को यह ​भी नहीं मालूम है  कि वह असहयोग आन्दोलन किसके लिए हुआ था | जबकि Dr. Ambedkar ने, Annie Besant ने इसपर detail में लिखा है  कि उसमे कहीं भी अंग्रेजों के खिलाफ कोई आन्दोलन नहीं था, वह pro-Khalifa आन्दोलन था | 

Madhu Kishwar: पर JNU में तो मैं पढ़ी हूं न ? मैंने तो उसके कितने सुन्दर-सुन्दर चर्चे सुने हैं| ऐसा नहीं है कि किसी को बताया नहीं गया, खूब झूठ भरा गया है हमारे दिमाग में|

Sushil Pandit: एक शब्द और आता है शंकरजी | किसी चुटकुले से कम नहीं लगता नहीं है मुझे| एक आन्दोलन का नाम वह कहते हैं सविनय अविज्ञा आन्दोलन| यह ​सविनय और अविज्ञा आन्दोलन के साथ पता नहीं कितना सही बैठते हैं |

Shankar Saran: वही चीज़ है | मुझे लगता है  कि एक उनकी संत  कि छवि बना दी गई और उन्होंने खुद भी बनाई | इससे ऐसा हुआ, और  जो मैं कह रहा था कि अगर आप उनको normal धोती-कुरता में या फिर सूट वाले ड्रेस में डाल दीजिए उस व्यक्ति को, फिर उनकी सारी activity को देखिए, बहुत गहरा doubt होगा कि यह ​कैसा व्यक्ति है | लेकिन उस वेश ने भी एक बहुत बड़ा काम किया है, कि जो पूरी तरह उट-पटांग बात है वह पूरी तरह गूढ़ और रहस्मय और बहुत मूल्यवान बात लगती है |  कि हम उसको नहीं समझ पा रहे हैं | तो, falsification of history ने एक बहुत बड़ा role निभाया है स्वतंत्र भारत में with state propaganda. 

 हम सारे इतिहास को एक sanitized way में पढ़ते हैं  डॉ अम्बेदकर या और लोगों के लिखने के बावजूद  कि वह 1919 से 21’- 22’ तक जो movement चला था वह 100% Islamic movement था | लेकिन उसको पढ़ाया जाता है कि वह anti-British movement था | और यह ​भी उसमे है Gadgil वाली, और गुरुदत्त वाली किताब में भारत: गाँधी  नेहरु  कि छाया में , कि जब कांग्रेस के लोग और नेता खिलाफ़त बोलते थे, तो वह खलीफा word को गोल कर जाते थे और यह ​लोगों को समझने देते थे  कि यह ​अंग्रेजों के खिलाफ़ आन्दोलन है और तुम चलो |

Madhu Kishwar: पर यह ​JNU History Centre  की भी येही उस कि परिभाषा भी, pronunciation भी spelling भी उनकी writings में | खिलाफ़त, कभी ख़लिफत शब्द मैंने इस्तेमाल होते मैंने न  सुना as a student of History in JNU.

Shankar Saran:– Sanitized version के चलते ऐसा हुआ| और अगर जो मैं कह रहा था  कि गाँधीजी के क्रियाकलाप और उनके वचन A,B,C coding करके किया जाएं  कि इस व्यक्ति का मूल्यांकन  कीजिये,  कि यह आदमी इस समय पैदा हुआ, इसने ये-ये काम किए, ये-ये decisions लिए, और ये-ये बातें कहीं तो उनकी जो छवि बनेगी वह बिलकुल अलग बनेगी | लेकिन चूँकि पहले से हमारे ऊपर इस बात का असर है कि आपको यह ​महापुरुष ही नहीं, राष्ट्र-पिता हैं | और यहाँ भी आप नोट कर लीजिए  कि यह ​अता-तुर्क का translation है, कोई Western World में राष्ट-पिता नहीं है, Communist world में भी राष्ट्र-पिता नहीं है |  Stalin के साथ ही सिर्फ था, उनको भी Father of Nation कहा गया था | और तो अता-तुर्क, जिसने पहले genocide में भाग लिया था| अता-तुर्क का मतलब Father of Turks और उसको यह ​copy कर के यह ​Father of India हो गए| तो यह ​सब तरह की चीज़ों के कारण उनकी यह ​छवि बनी है नहीं तो मैं समझता हूं  कि सत्य-अहिंसा, दोनों कसौटियों पर fail होते हैं | बल्कि चूँकि गाँधीजी ने खुद कहा  कि ब्रम्हचर्य मेरे सारे क्रियाकलापों  की कसौटी है और कांग्रेस की भी कसौटी है| वे तो कमाल बातें करते थे – तीनो पर वे fail होते हैं | किसी भी निष्पक्ष jury को बनाया जाए, वह पढ़ी-लिखी हो, वह निष्पक्ष लोगोंकी हो, वह इसको पास नहीं करेगी | चूँकि हमारे ऊपर वे थोपे हुए हैं, हमें सब कुछ मानना है इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकते | हम जो बातें कर रहे हैं वह दो-सौ, पांच-सौ, हज़ार लोगों तक पहुँचेगी | लेकिन state  की ओरसे जो प्रचार होता है वह एक साथ करोड़ों लोगों तक पहुँचता है |

और फिर उनको वह Jesus Christ वाला imagery भी किसी British Journalist ने दी थी,  कि यह ​तो second Jesus Christ हैं | तो फिर missionaries ने भी उनको वहाँ  खड़ा किया | Koenraad, जो काशी में पढ़े हुए हैं, ने लिखा हैं कि उनके गुरु ने बताया था कि गाँधीजी के रहते जो वास्तव में हिन्दू साधू-संत, पंडित, ज्ञानी थे, एक भी गाँधीजी को महात्मा या संत नहीं मानता था | और उसका बड़ा simple कारण उन्होंने बताया कि गाँधीजी ने आत्म-प्रदर्शन  की, अपना प्रचार करने  कि जो आदत थी वह पूरी हिन्दू परम्परा में साधू, संतो, ज्ञानियों में कभी नहीं रही | सिर्फ एक कारण से ही यह ​काफी था कि भारत के साधू, संत, ज्ञानी कभी इनको कुछ नहीं मानते थे |

और जो हमारे जो मॉडर्न ऋषि थे, Sri Aurobindo, उनके Evening Talks में मिलता है ; उन्होंने समय-समय पर गाँधीजी के बारे में जो टिप्पणियां  की थी वह इतनी सटीक हैं |

Madhu Kishwar: बोलिए जरा ? कुछ उदाहरण दीजिए?

Shankar Saran: एक तो वह कहते हैं  कि गाँधीजी एक dictator थे | गाँधीजी का विरोध कर के कोई कांग्रेस में टिक नहीं सकता | फिर गाँधीजी के उस statement पर कहते हैं  कि गाँधीजी ने एक बयान दिया था कि भारत के आठ करोड़ मुस्लमान तय कर लें कि हमको भारत में नहीं रहना है तो उनको बनाए रखने का कोई अहिंसक तरीका मैं नहीं जानता | तो इस पर Sri Aurobindo कहते हैं  कि यह ​तो invitation देना हुआ उसको  कि तुम मांगो, हम मान लेंगे,  क्योंकि हम तो विरोध करेंगे ही नहीं |

तो इस तरह  की बहुतसी टिप्पणियां Sri Aurobindo ने  की हैं | मैं समझता हूं कि वे Western Scholarship और Indian ज्ञान परंपरा, दोनों के वे प्रकांड पंडित थे | Politics में भी रहे थे कुछ दिन, उन्ही के समय में वह आन्दोलन हुआ था जब पहला बंग-भंग खत्म हुआ, स्वदेशी आन्दोलन | बल्कि वन्दे मातरम् के नारे को लोकप्रिय बनाने में Sri Aurobindo का हाथ था |  उनके अख़बार का नाम वन्दे मातरम् था | तो उनको politics की भी समझ थी, यूरोपियन स्कालरशिप  की भी पूरी जानकारी थी, उनकी बचपन  की पूरी शिक्षा-दीक्षा यूरोप में हुई थी | फिर भारत आए तो उन्होंने पुरे शास्त्रीय​ ज्ञान परंपरा को अपने full control में किया | तो उनकी जो टिप्पणियाँ हैं 1920 से लेकर 1947 तक, अंत तक बल्कि मैं तो कहूँगा कि उनके देहांत पर भी जो उन्होंने बयान दिया है वह भी पढ़ने लायक है | उसमे dual meaning है | तो किसी साधू, संत, ज्ञानी ने गाँधीजी को महत्व नहीं दिया था | इसलिए मैं बार-बार उस चीज़ पर आता हूं कि अगर यह ​state-propoganda नहीं रहे तो गाँधीजी बहुत ही ordinary politician, even harmful politician के रूप में ही उनका मूल्यांकन हो सकता है | लेकिन हमारी दुर्भाग्य यह ​है कि हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था एक sanitized और falsified history पढ़ाती है और school के बाद शायद ही कोई बच्चा history पढता है | उस समय तक जो image बन जाती है और उसके बाद यह ​जो नियमित राजकीय अनुष्ठान होते रहते हैं, उसके कारण यह ​बड़ी मुश्किल होती है  कोई विपरीत बात बोले  | यह ​भी एक विडंबना है कि सच बोलने वाले को गालियाँ सुन्नी पड़ती हैं कि आप यह ​सब क्या बातें बोल रहे हैं, बढ़ा-चढ़ा के बोल रहे हैं, इसको अभी क्या याद करने  की जरुरत है, personal life को क्यों ले आते हैं ? 

और मैंने हमेशा पाया है  कि गाँधीजी के मूल्यांकन में एक बड़ी समस्या है | जब आप एक politician के तरह उनका मूल्यांकन करो तो कहेंगे  कि वे तो संत थे जी, संतो के बारे में तो कुछ special rights होते हैं | और जब आप संत का मूल्यांकन करने लगो तो कहेंगे  कि यह ​आदमी बिलकुल संत नहीं है, तो कहते हैं  कि politics में बहुत कुछ करना पड़ता है | तो, गाँधीजी को politician की कसौटी से भी छुट्टी दे दी गई है, और संत  की कसौटी से भी छुट्टी दे दी गई है | लेकिन उनको संत भी महान बताया जाता है और politician भी महान बताया जाता है | यह हमारे ऊपर दोहरी, तेहरी झूठ  की ऐसी चोट है और इतना दबाव है कि अगर यह ​social media, और यह cable television, internet अपने हाथ में search करना और अपने हाथ में broadcast करना, यह ​हाथ में नहीं आया होता तो आज जितनी बातें हम बोल रहे हैं, ये ​बातें उतने लोगों तक नहीं पहुँचती जितनी आज पहुँच रही हैं | और फिर भी स्तिथि यह ​है  कि इस तरह के talks का कुछ ख़ास असर नहीं पड़ता |

Madhu Kishwar: आप यह ​मत सोचिए | मुझे लग रहा है कि एक नई जनचेतना  की लहर उठ रही है | और जितना भी हमारा विरोध कर लें social media के जो corporate honchos हैं, वे जितनी मर्ज़ी इस्लाम की, Communists  की, Maoists  की ख़िदमत करना चाहें पर असल में सचाइयाँ जो निकल के आ रही हैं वे केवल हमारे पक्ष की हैं | उनके पास कोई सच्चाई है नहीं और वे नंगे हो रहे हैं आए दिन | अब दूसरी बात, आप दोनों ने state policy की बात कही |

Sushil Pandit: मधुजी इससे पहले  कि आप दुसरे प्रश्न पर जाएं, क्यूंकि इससे पहले हम ख़लिफत  की बात कर रहे थे और सत्य और अहिंसा के सन्दर्भ में बात कर रहे थे, मैं दो बातें यहाँ कहना चाहूँगा | एक तो इसी घटना ने ख़लिफत आन्दोलन ने ही इन दोनों कसौटियों पर महात्मा गाँधीजी को एक बड़ा पाखंडी सिद्ध किया है |

Madhu Kishwar: M. K. Gandhi बोलो | अब महात्मा नहीं, दुष्टात्मा कहने लगे हैं लोग उन्हें |

Sushil Pandit: कांग्रेस ने ख़लिफत को असहयोग आन्दोलन बता कर के जो इतिहास का पाखण्ड रचा, उसके बारे में तो शंकरजी ने बताया | आपने कहा  कि JNU में जो वामपंथ ने पाखंड इसपे किया, वह इसको class struggle के रूप में, किसानों का ज़मीनदारों के खिलाफ विरोध के रूप में दर्शाते हैं | उसे असहयोग आन्दोलन नहीं बताते हैं, वे उसको कहते हैं  कि  it was a peasant revolt. 

ज़मींदार वहाँ  केवल हिन्दू तो नहीं थे | मालाबार में तो मुस्लिम ज़मींदार भी थे| बल्कि मुस्लिम ज़मींदार ज्यादा थे| एक भी मुस्लिम ज़मींदार के साथ कुछ हरकत बता दो | दूसरा, मैंने कहा मारे गए सारे हिन्दू ज़मींदार नहीं थे, बिचारे किसान थे, गरीब थे, गाँव में रहने वाले थे, तो उन्हें क्यूँ मारा जा रहा था | मुस्लमान अगर पिल रहे थे तो गरीब किसानों पर क्यूँ पिल रहे थे | लेकिन इसका जवाब नहीं है |

Madhu Kishwar:- Conversion  की क्या जरुरत थी ? औरतों को abduct करने  की क्या जरुरत थी ?

Sushil Pandit: वहाँ  की हमारे पास चिट्ठियां दर्ज हैं | वहाँ  की कुछ संभ्रांत महिलाओं ने जो अंग्रेज़ सरकार को चिट्ठी लिखी है कि क्या हो रहा है ? टीपू ने जो वहाँ  पर किया था वह तक उसके सामने बौना पड़ गया था | यह ​तो इतिहास के साथ पाखण्ड हुआ, कांग्रेसी विचार और वामपंथी विचार, दोनों विचार अपने-अपने अलग तरह से | और इसपर जो कुची फेरी गाँधीजी ने तो सत्य तो वहीँ धारासाई हो गया |

लेकिन यह ​ऐसी हिंसा थी, जिसने उनके अहिंसा के भी कसौटी  की भी पोल खोली | उन्होंने इसको एक धर्म-भीरु और धर्म-परायण मुस्लमान के असहनीय क्षोभ का परिणाम बताया| उन्होंने इसे उसकी दंगाई प्रवृति और हिन्दुओं के प्रति घृणा, इस रूप में निरुपित नहीं किया | उन्होंने कहा क्यूंकि उसके मज़हब पर attack था और वह बहुत धर्मपरायण हैं तो यह ​प्रतिक्रिया जो थी वह एक तरह से उचित थी | यह ​समझने वाली बात थी | इसको एक तरह से गाँधीजी ने rationalize किया | इसके औचित्य को एक तरफ से स्थापित करने की कोशिश  की | फिर कहाँ जाती है वह अहिंसा ? वहीँ औचित्य उन्होंने कलकत्ते के action day में भी दिखाया | आप विश्वास नहीं करेंगे,  कि इसी ख़लिफत आन्दोलन में तो उनकी तुष्टिकरण के निति का तो स्वयं जिन्नाह ने विरोध किया |

Appeasement, भारत  की राजनीति में जो शब्द आता है, इसका सबसे पहला उपयोग जिन्नाह ने गाँधीजी के खिलाफ, ख़लिफत  की निति को लेकर किया – why are you appeasing the most obscurantist and bigoted Muslims in this movement?  यह ​जतलाता है  कि वह किस हद तक, गाँधीजी, किस हद तक चले गए थे ख़लिफत आन्दोलन का औचित्य सिद्ध करने में | और उसके बाद जब बटवारा हुआ और हिन्दू लुट – पिट मर कर के दिल्ली पहुँचे, मस्जिदों में शरण मांगी तो उसका क्या हश्र किया|

जो हिन्दू सन्मति के संस्थापक रहे हैं, घोस दादा, मुझे यह ​बात उनसे पता चली  कि गाँधीजी जब कलकत्ता पहुँचे और उन्होंने कहा  कि सभी अपने-अपने हथियार डाल दो, सभी हिन्दू जिन्होंने प्रतिकार किया वे आकर के हथियार डालेंगे, अहिंसा की शपथ लेंगे तो बहुत से लोग आए और अनशन पे बैठे | किसी ने कहा  कि गोपाल मुख़र्जी, जिनका नाम गोपाल माठा के नाम से जाना जाता था, वे नहीं आए |  वे ​काली भक्त थे, वे ​एक meat  की दूकान चलाते थे और एक अखाड़ा चलाते थे | 16 अगस्त  की जो हिंसा हुई, यह अप्रत्यासित थी, तैय्यारी नहीं थी, इनको पता नहीं थी| दुसरे-तीसरे दिन इन्होने अपनी टोली जमाई और प्रतिकार शुरू किया और अपना बचाव शुरू किया | और इतनी ज़बरदस्त सफलता मिली की कलकत्ते के दुसरे मुहल्लों से भी इन्हें कहा गया  कि आइये, हमें भी सिखाइए, हमें भी बताइए |

तो, तीसरे दिन तक आते-आते दंगाई घुटनों तक आने लगे, पानी मांगने लगे, उन्होंने कहा  कि बंद कीजिये, छोडिए| और गाँधीजी बुलाए गए, और उन्होंने सबसे हथियार डालने के लिए कहने लगे | तो गोपाल माठा से कहा गया  कि गाँधीजी बुला रहे हैं आइए, और मनाया गया | तो गाँधीजी ने उनसे कहा  कि हथियार डालिए | तो गोपाल माठा ने उनके मुह पर कहा  कि जिन हथियारों से, जिन शश्त्रों से मैं अपनी माँ-बहन के सतीत्व की रक्षा करता हूं, उनके प्राण बचाता हूं, वह किसी हालत में मैं समर्पण नहीं करूँगा और कह कर के चले आए | तो गाँधीजी की अहिंसा एक तरफ़ा थी, वह कायराना अहिंसा थी, वह हिंसा के सामने घुटने टेकने वाली अहिंसा थी | और इस अहिंसा को आज भी बढ़ा-चढ़ा कर गाया बजाया जाता है | यह ​हमारी प्रतिक्रिया को बोथरा करने वाली, और उसके विषय में सोच को भी न पनपने देने वाली एक धारणा है | जिसकी आज भी हम बहुत बड़ी  कीमत चूका रहे हैं |

Madhu Kishwar: आपने बहुत सही कहा सुशिल भाई, अहिंसा के पाठ वे केवल हिन्दुओं को पढ़ाते थे |  कभी मुसलमानों को उन्होंने अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया | बल्कि justify किया  कि यह ​तो उनका मज़हबी mandate है, यह ​तो उनका मज़हब मांगता है उनसे तो वे करेंगे | और आपका क्या काम है, जैसे Partition की हिंसा हुई, तब भी गाँधीजी का कहना था  कि यह ​मेरी अहिंसा का सत्याग्रह का सबसे बड़ा सबूत होता यदि आप स्वेक्षा से कहते  कि मारिए हमें, वहाँ  से हिलते नहीं, उठ के भागते नहीं | वहाँ  पे मर जाना चाहिए था | औरतों के साथ जब rape हुआ …

Sushil Pandit: मर जाना चाहिए था, और बिना प्रतिकार किए स्वेच्छा से मर जाना चाहिए था, यह ​बोला उन्होंने |

Madhu Kishwar: दूसरा, महिलाओं के साथ जब rape हुए, और अत्याचार हुए, उनको abduct करके, sex slave बनाके जब रखा गया तो गाँधीजी की यह ​advice थी  कि अपनी जुबान को इतनी जोर से दाँतों को दबा लो ताकि उसकी दर्द आपको rape  की तकलीफ़ को भुला दे |

समझ नहीं आता कि यह ​आदमी किस तरह का दुष्टात्मा था | औरतें कुंवे में jump कर रही हैं, जैसे जौहर किए गए, इस्लामी हाथों से बचने के लिए, इस वक़्त जौहर का समय भी नहीं था, तो कितनी औरतें ने, बच्चों ने, अपने को कुंवे में डाल के आत्म-हत्या  की | तो ऐसे में यह ​सलाह देते हैं और कभी मुसलमानों को अहिंसा और सत्य का पाठ उन्होंने नहीं पढ़ाया | और मेरा यह ​मानना है  कि अगर उस वक़्त जिन्नाह England न चले गए होते, कांग्रेस से निकलके, शायद भारत का भविष्य कुछ और ही होता | अगर जिन्नाह  की सुनी जाती या फिर 47’ में अम्बेदकरकी सुनी जाती तो भारत का भविष्य कुछ और  होता |

जिन्नाह शुरू तो नहीं हुए थे Partition को ले के |  जिन्नाह की जो खुन्नस आई  कि तुम मुसलमानों के नेता बनना चाहते हो, मैं दिखाऊंगा तुम्हे | तुम सोचते हो दस-बीस मुल्ला तुम्हारे साथ हो गए, तो तुम मुसलमानों को leadership दोगे | मैं तुम्हे दिखाऊंगा  कि मुसलमानों  की leadership होती क्या है | He succeeded.  About simplicity : simplicity एक नौटंकी और आडम्बर लगती है |  He weaponized it.  अपने opponents को निरुतर करने के लिए, नौटंकी जिसको कहते हैं | आज भारत के एक बहुत बड़े सपूत लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्मदिन है| अगर simplicity का भी उदाहरण देखना है किसी नेता में तो लाल बहादुर शास्त्री को देखिये | इतना नम्र-विनम्र, मतलब सही में त्यागपूर्ण जीवन जिया उन्होंने | उन्होंने नौटंकी नहीं की,  simplicity का ढिंढोरा नहीं पिटा, उसको showcase नहीं किया, पर गाँधीजी तो केवल photo-op के लिए पैदा हुए थे | He wanted the cameras around him, कुछ ऐसा नया करूँ  कि लोग यह ​कहें  कि ‘ऐसा भी होता है’|

आप देखिए भगत सिंग के फांसी के वक़्त भी | भगत सिंह also began to emerge as a very powerful youth icon. एक शब्द नहीं बोला गाँधीजी ने जब भगत सिंग, राजगुरु, और इनके साथियों को जब फांसी दी गई | फिर, अम्बेदकर के साथ जो इनका दुर्व्यवहार रहा, जिस की वजह से अम्बेदकर को भी अलग राह चुन्नी पड़ी, और यह ​दलितों के भी sole spokesperson हो ग​ए | हम कहते तो हैं कि Jinnah wanted to be the sole spokesperson of Muslims and that led to the creation of Pakistan. But, गाँधीजी तो हरेक के sole spokesperson बनते थे | दलितों के, औरतों के, मुसलमानों के, मतलब सब बेजु़बान हो जाएं और मैं बताऊंगा  कि तुम्हारे लिए क्या उपयुक्त है? और इसीलिए लोग कटते गए | Some of the tallest figures had to leave the Congress जिनमे नेताजी भी हैं और मुझे नहीं लगता कि भगत सिंग भी कांग्रेस में टिक पाते | क्यूंकि वे तो लाला लाजपत राय के inspiration से आए हुए युवा नेता थे ;  और उन्होंने जो बम भी फेंका वह लाला लाजपत राय के ऊपर जो अत्याचार हुआ, lathicharge हुआ, इसकी वजह से |  कोई मरा नहीं पर गाँधीजी अपने अहिंसा के जो आडम्बर ले के | 

एक और बात मैं share करना चाहती हूं | Bollywood में भी अगर किसी को अच्छा चरित्रवान बताना है तो उसके पीछे हमेशा गाँधीजी  कि फोटो रहेगी | यहाँ तक  कि जो underworld financed films रही हैं, जिसमे Dawood Ibrahim जैसे लोगों का पैसा लगा होता था, वहाँ  पे भी जैसे किसी अच्छे पुलिस वाले को बताना है तो पीछे गाँधीजी  की फ़ोटो| यानी  कि वह कसौटी है किसी को भी अच्छाई  की छाप​ देने के लिए |

Bollywood ने भी  गाँधीजी  की यह ​कायरता का message हिन्दुओं को दिया ; धिम्मिपना भी नहीं कह सकते, कायरता भी नहीं कह सकते, जलालत का message हिन्दुओं को दिया| यह ​मैं अहिंसा भी आज नहीं कह सकती | अगर आज आप अपनी पत्नी, बहु,  बेटी,  की रक्षा के लिए, उनको ऐसी  ताकतों से बचाने के लिए, या gangrape  से बचाने के लिए भी आपको इज़ाज़त नहीं है तो आप इंसान नहीं हैं |

जलालत की हद से बाहर की नपुंसकता हिन्दुओं को सिखाया| मेरे पास और कोई शब्द ही नहीं है | मैं सोचती थी instead of masculinizing, he tried to feminize men.  चरखा सिखाया, हिंसा मत करो, meditative exercise, हिंसा का रोकने के लिए औरतों को आगे रखो वगैरह-वगैरह  सिखाया | यह ​एक मेरा उन दिनों का interpretation था | अब जब मैं देखती हूं तो जो message निकल के आता है, वह नपुंसकताका, किसी भी हाल में कितना ज़लील हो जाओ, लुट जाओ, पिट जाओ, आपकी बेटी आपके सामने gangrape होके, आप बाद अल्लाह-इश्वर तेरो नाम कह के उसको गले लगा लो | यह ​गाँधीजी चाहते थे | उनके पास बंगाल की हिंसा के दौरान, जो आपने गोपाल पाठा का वर्णन किया, वहाँ  पे जो हिन्दू बिलखते हुए उनके पास गए, मालूम है उनको क्या उन्होंने recipe दी peace लाने के लिए ? कोई मुस्लिम बच्चा adopt कर लो, उसको छाती से लगा कर वह प्यार दो जो तुम तुम्हारे बच्चे को देते अगर वह आज भी जिंदा होता |

Can you imagine this type of perversion, sadism and masochism that he is telling people? मरहम-पट्टी तो क्या लगाना, जख्मो पे मिर्च छिड़कने का काम गाँधीजी हमेशा करते रहे  | ऐसे देश में हम तो देवी उपासक रहे हैं, शक्ति उपासक रहे हैं | हमारे तो सब भगवान्, राम-राज्य  की स्थापना  की यह ​बात करते हैं | राम तो जब बनवास भी गए, लक्ष्मण भी, धनुर और पूरी अपनी शस्त्र​ लेके गए | उन्होंने पूरी अपनी कोई कपड़े, कोई और सुख सुविधा का सामान नहीं रखा | और वहाँ  पे भी राक्षसों का वध कर रहे थे ;  जो भी ऋषियों-मुनियों को सता रहे हैं उनका वध कर रहे थे | फिर लंका में जाके रावण का वध किया, क्यूंकि सीता को उठा ले गए | तो एक सीता के लिए पूरी कायनात को उनके भगवान् राम, जिनका गाँधीजी हवाला देते थे, वे इतना बड़ा वध कर सकते थे, इतना बड़ा युद्ध कर सकते थे | पर गाँधीजीने यह​ message  दिया कि  आपके सामने आप की बीबी, बेटी के कोई चीथड़े कर दे, आप शांत रहिए और भजन गाते रहिए | यह ​जैसे इस किसम की नपुंसकता का message, समझ में नहीं आता कैसे झेले होंगे | मेरे माँ-पिता के generation के जो victims रहे होंगे Partition के, कैसे झेले होंगे इस आदमी को? और सबको चुप करा दिया गया | 

जो अपनी ही कसौटी पे कभी खरे नहीं उतरे, इसके और कुछ उदाहरण दीजिए हमें ?

Shankar Saran: मैं दो चीजों पर ध्यान दिलाना चाहता हूं :  एक तो यह ​बात रह गई, उनकी जो अहिंसा की धारणा भी थी वह एक तरह से corrupted थी | वे कहते भी थे मेरी परिभाषा है | यह ​भी गाँधीजी के असीम अहंकार का एक नमूना है कि  वे किसी भी चीज़ की जो शास्त्रीय​ परिभाषा है, मान्य परिभाषा है, विद्वानों की परिभाषा है, यहाँ तक कि जनता की परिभाषा है, वे किसी को महत्व नहीं देते थे | उनकी एक terminology थी, “मेरी परिभाषा “| तो अहिंसा की धारणा का भी जो उन्होंने उटपटांग अर्थ किया; वे कहते थे कि गीता में अहिंसा है, रामायण में अहिंसा है | आप वाल्मीकि रामायण को पढ़िए, आपने सीता अपहरण का उल्लेख किया, मै कहता हूं सीता अपहरण से पहले 600 पन्ने चलती है उल्लेख | मैं दावे के साथ कहता हूं  कि एक page भी नहीं है जिसमे पुरुषों के लिए वीरता के अलावा किसी गुण का उल्लेख हो | वीरता पहला गुण है, और उसके बिना पुरुष –पुरुष ही नहीं हो सकता | यह ​वाल्मीकि रामायण, महाभारत और गीता, यह ​तीनो में आती है |  यह ​सिर्फ वर्ण के लिए नहीं है, क्षत्रियों के लिए नहीं है, यह ​पुरे पुरुष जाती के लिए है उसमे |

तो अहिंसा का गाँधीजी जो अर्थ करते थे, उसके ऊपर भी Sri Aurobindo का लिखा हुआ मुझे कुछ मिला | Sri Auribindo  की बड़ी प्रसिद्धि थी, वह politics में भी रह चुके थे और National Icon भी रह चुके थे | एक मायने में उनको Prophet of Internationalism भी कहा जाता था ;  Dr. Karan Singh  की एक किताब भी है इसपर| और उनकी प्रसिद्धि, जब  वे योग-ऋषि हो गए, तब भी थी | तो गाँधीजी एक बार उनसे मिलने जाना चाह रहे थे, तो पहले उन्होंने अपने बेटे को भेजा, शायद देवदास गाँधीजी को |  यह ​उस ज़माने की बात है जब यह ​चर्चा हो रही थी कि भारत के मुस्लमान अफ़ग़ानिस्तान के आमिर को invite करने वाले थे  कि attack करो | यह ​अंग्रेजों को हरा देंगे और हम तुम्हारे साथ मिल जाएंगे और फिर से हम तुम्हारे साथ मुग़ल शासन करेंगे | यह ​news में था इसपर रविन्द्र नाथ टैगोर, Annie Besant, लाला लाजपत राय, बहुत लोगों  की टिप्पणियां news में थीं |

उसी समय  देवदास गाँधीजी  Pondicherry पहुँचे​ थे | तो Sri Aurobindo ने उनसे यही पूछा  कि मान लो अफ़ग़ानिस्तान आक्रमण कर देता है तो उसका मुक्काबला तुम अहिंसा से कैसे करोगे ? देवदास को क्या मालूम इसका जवाब, तो उन्होंने लौट कर के पिता जी को बताया कि उन्होंने यह ​पूछा | उसके बाद गाँधीजी ने उनसे मिलने का इरादा त्याग दिया | तो कहने का मतलब यह ​हुआ, गाँधीजी का अहिंसा का एक जड़ झूठा, नकली और मनमाना अर्थ थोपते थे | और इसके बाद मैं वह दूसरी बात कहुँगा उदाहरण के तौर पर |  Koenraad Elst ने बहुत मार्मिक बात लिखी है,  कि अगर जो आज भी गाँधीवादी हैं, उनको अगर अपने हीरो पर research करना है तो उनको एक चीज़ पर research करनी चाहिए| उनका infatuation with death था और उसके बाद  वे जोड़ते है other people’s death के साथ​ |  यह ​बहुत note करने वाली बात है वह अंग्रेजों का जो चरित्र था, ऐसा Gadgil और Koenraad कहते हैं, कि वह साम्राज्यवादी होते हुए भी एक तरह के democrat और liberal थे |

और वह अपनी image के प्रति भी ध्यान रखते थे | तो Gadgil कहते हैं  कि गाँधीजी को यह ​मालूम था  कि अंग्रेज़ उनको हानि नहीं पहुचाएंगे | इसीलिए   वे जम कर उनके खिलाफ सत्याग्रह करते थे | लेकिन उन्होंने Islamists के खिलाफ़ कोई सत्याग्रह और बयान भी नहीं दिया | तो Koenraad तो ध्यान दिलाते हैं और जो मैंने भी note किया है, जो बार-बार   वे सत्याग्रह करते थे और शायद यह ​देख के करते थे जहाँ पर उनको खतरा नहीं होने वाला |

Sushil Pandit: इसपर एक बड़ा रोचक प्रसंग है | मैं दो साल पहले गुजरात गया था और पोरबंदर एअरपोर्ट पे उतरा तो मुझे लगा कि चलिए पोरबंदर में उनकी कोई स्मृति या भवन होगा | कुछ देखने लायक होगा तो मेरे जो मेजबान थे, उनको बहुत अच्छा नहीं लगा | उन्होंने कहा चलिए आप देखना चाहते हैं तो उनके पुराने घर के जहाँ  वे पैदा हुए थे | तो मैं देख आया |  हम लोग अब लौट रहे थे तो उन्होंने मुझे पूछा गाँधीजी से आपका कितना लगाव है? मैंने कहा कि विशेष कुछ नहीं केवल कौतुहल वश यहाँ आया था | तो उन्होंने कहा आपको एक बताता हूं यहाँ एक सत्य घटना जो हुई, यह ​Kathiawad का इलाका है | कहते हैं गाँधीजी जब यहाँ आए थे तो यहाँ एक राजा था, एक रियासत थी | गुजरात और राजस्थान में सबसे ज्यादा princely states थी | छोटी-छोटी रियासतें थी कुछ-कुछ दस-बीस गाँव  की भी एक रियासत हो जाती थी | तो उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनके पास आए, और बोले  कि वहाँ  का जो राजा है, ज़मींदार है उसने लगान बढ़ा दिया है और आइए सत्याग्रह  कीजियह ताकि वह बढ़ा हुआ लगान कम हो जाए |

तो वह लगान शायद इसलिए बढ़ा हुआ होगा  कि शायद अंग्रेज़ ने भी demand ज्यादा की होगी तो उसने किसानों पे डाल​ दिया | तो गाँधीजी ने कहा चलिए चलते हैं, करते हैं सत्याग्रह, कौन है, कहाँ है सत्याग्रह| तो राजा तक यह ​खबर पहुँची​ और कहा  कि मैं आमरण अनशन कर रहा हूं |  जब तक यह ​बढ़ा हुआ लगान वापस नहीं होगा, मैं यहाँ आमरण अनशन के लिए बैठा हूं | ज़मींदार के पास खबर गई, आप गाँधीजी तो आमरण अनशन पर बैठ गए, बढे हुए लगान को वापस करवाने के लिए, तो ज़मींदार की प्रतिक्रिया हुई  कि यह ​तो मेरे राज्य का अहोभाग्य है कि गाँधीजी यहाँ पर अपना देह त्याग करेंगे | तो उनका यह ​कहना था और गाँधीजी तक यह ​बात पहुँची​  तो अगले दिन वे अपना बोरिया बिस्तर उठा के चले गए |

Shankar Saran: उसका उदाहरण मुझे एक और मिला वह जब मैं अहिंसावादी किताब की तैय्यारी कर रहा था | जब  वे Noakhali गए थे दंगो के बाद शांत करने के लिए, तो उन्होंने वहाँ  एक बयान दिया था कि वहाँ  जब तक शान्ति नहीं हो जाएगी और हिन्दू-मुस्लिम में आपस में प्रेम और सामान्य स्तिथि नहीं हो जाएगी, मैं नहीं आऊंगा, मैं अपने प्राण दे दूंगा | लेकिन जब   वे वहाँ  गए, तो वह मुसलमानों के वर्चस्व का इलाका था तो पहले तो जो कुरान का पाठ किया करते थे उन्होंने धमकाया  कि ख़बरदार जो तुमने किया | तो पहले तो उन्होंने वह बंद किया | और जब उन्होंने देखा कि वहाँ  पे उनकी कोई दाल नहीं गलने वाली है तो उनको जो पहला चिट्ठी मिली, बिहार में दंगा हो गया वह चुप-चाप चलते बने और बिहार चले गए| वे  ​बोल के गए थे  कि Noakhali से जब तक शान्ति नहीं होगी, तब तक मैं नहीं लौटूंगा तो बिहार कैसे चले गए ?  तो यह ​हुआ है बार-बार |

Madhu Kishwar: और पाकिस्तान जाने की हिम्मत की ? जो इलाका पाकिस्तान बना वहाँ ?  कभी नहीं गए |

Shankar Saran: जिसको सीताराम गोयल ने कहा है न,  “Greatest Betrayal of History.” यह​ इसलिए क्यूंकि वे कराची, लाहौर जा-जा के लोगों को आश्वस्त करते थे कि चिंता मत करो, पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा | और तब वे वहाँ  पे गए जहाँ पर लोगों को मारा जा रहा था | तो मुझे यह ​बात सटीक लगी कि उनको other people के death से  प्रेम था | अपने को उन्होंने कभी खतरे में नहीं डाला |

Not only this.  एक और interesting बात मुझे मिली, जो उनके आत्म-कथा में ही है, कि एक बार दक्षिण अफ्रीका में उनपर हमला हुआ और उनका कोई लड़का उनके साथ में था | और तब तक उनका वह हिन्द-स्वराज हो चूका था, अहिंसा वाली बात उनकी theorize हो चुकी थी | तो उनके लड़के ने ही पूछा, मैं उसका नाम भूल रहा हूं | अगर वह आपको मारने लगते और आपकी जान लेने लगते तो मेरा अहिंसा  की दृष्टि से क्या कर्तव्य था ? तो गाँधीजी कहते हैं कि नहीं, चूँकि तुम पुत्र हो, तो पिता की रक्षा करना चाहें, वह हिंसा से भी, वह तुम्हारा कर्तव्य था | यह ​गाँधीजी के writing में है |

लेकिन यह ​चीज़ उन्होंने हिन्दुओं को अपने परिवार की रक्षा के लिए, पंजाब में, बंगाल में, सिंध में कहीं नहीं कहा| न ख़लिफत के दौरान, न Partition के दौरान, न उसके बाद | तो यह ​बात मुझे भी लगता है कि गाँधीजी का यह ​आडंबर बहुत बड़े पैमाने पर था | सिर्फ वह अहिंसा वाली बात नहीं, कि वे बहुत safe लड़ाइयाँ लड़ा करते थे कि कोई न कोई उनको बचाने आ जाएगा, वहीँ वे अनसन पर बैठा करते थे | और जहाँ भी उनको खतरा था, वहाँ  से वे चलते बनते थे | एक दूसरी चीज़ भी है, उनका जो फ़क़ीर वाला आडंबर था उसपर सरोजिनी नायडू ने कहा है  कि बहुत खर्चा करना पड़ता है उनको फ़क़ीर बनाए रखने के लिए |

Madhu Kishwar: It takes a lot of money to keep Gandhi safe in poverty.

Shankar Saran: एक और उदाहरण मैं note कर देना चाहता हूं | यह ​सिर्फ यही पक्ष में नहीं था | यह ​जब मैं ब्रम्हचर्य वाली किताब तैयार कर रहा था, उसमे मिली उनके Works में , और यह ​mature Gandhi  की बात है| मतलब 1938-47 तक चला | मैंने पुरे उनके Works को खंगाला है , स्त्रियों और लड़कियों के साथ जो वहव्यवहार करते थे उसपर | जब इनका बाहर दौरा हुआ करता था, तो इनकी जो special मालिश करने वाली लड़कियां हुआ करती थी वे भी इनके साथ जाती थीं | दुसरे पुरुषों से मालिश नहीं करवाते थे, वे बस स्त्रियों से ही मालिश करवाते थे| और वह भी जो इनकी favorites होती थीं | तो मेरे मन में सीधा सवाल आया कि यह ​किस तरह  की सादगी है ?  यह ​किस तरह का साधू और संत वाला मामला है कि न केवल आपको हर जगह और हर दिन मालिश चाहिए, बल्कि मालिश भी favorite person से चाहिए और वह भी स्त्री होनी चाहिए | नहाते समय भी इनकी जो परिचारिका है वह स्त्री होनी चाहिए |

Madhu Kishwar: और नहलाती थीं और साथ में वह भी नग्न होके नहाती थीं|

Shankar Saran: वह एक अलग कथा है | लेकिन मैं सिर्फ इसका ध्यान दिला रहा था कि जो आपने आडंबर वाली बात आपने पिछले point में कही थी, मुझे लगा कि यह ​दो-तीन उदाहरण सामने रहने चाहिए कि न केवल उनका रहन-सहन आश्रम वाला बल्कि निजी जो परिचर्या और सेवा भी है, उसका भी आडंबर काफि है | और अहिंसा की धारणा, अहिंसा का प्रयोग, उसमे आडंबर के साथ-साथ दोहरापन भी था और मैं समझता हूं कि कई बार यह ​जानते-बूझते था |

यह हो नहीं सकता  कि गाँधीजी न समझते हों  कि गीता में या महाभारत में या रामायण में अहिंसा का वही अर्थ दिया गया हो जो यह ​कह रहे हैं | तो इसका मतलब उन्होंने जान बूझ  के भी लोगों को एक तरह से धोखा दिया | अहिंसा का वह अर्थ बताया हिन्दुओं को जो वास्तव में हिन्दू अर्थ नहीं है | वह अहिंदू अर्थ है, वह किसी का अर्थ नहीं है |

Madhu Kishwar: न Christianity मानती है, न इस्लाम मानती, बौध भी नहीं मानते | कौन मानता है? केवल नपुंसक पुरुष | यह ​नपुंसकता का Manifesto है | सुशिल भाई इससे पहले मैं आपको कुछ बताना चाहती हूं | आपने बताया न कि पोरबंदर में गाँधीजी का पुश्तैनी घर था | आप देखने गए| Do you know who gave it a new lease of life ? यह ​नरेंद्र मोदी जी ने दिया | पहले मोदीजी को यह ​विचार आया, क्यूंकि पहले कोई नहीं जाता था | यहाँ राजघाट पे उनकी कब्र जैसी बना दी |

हिन्दू धर्म में जो तथाकथित समाधी है, यह ​तो कोई हिन्दू पद्धति है ही नहीं | हम जन्म स्थान को पूजते हैं | यहाँ पे मरण स्थान को State policy ने एक tourist spot बना दिया | तो वह उसको new lease of life दिया| और यह ​जो नपुंसकता का Manifesto गाँधीजी ने दिया, अहिंसा के नाम पे हिन्दूस्तान के हिन्दू पुरुषों को मुस्लिम पुरुषों को नहीं | इसी वजह से आप देखते होंगे, जब भी Owaissi साहब जो इस देश में कई और टुकड़े बनाने की पूरी घोषणा कर चुके हैं मुग्लिस्तान बनाने के उनके plan ready हैं | और टुकड़े होंगे, यह सब लोग, सिर्फ Owaissi साहब नहीं परन्तु जितने भी leading Muslim leaders हैं चाहें Deobandi हों, चाहें हमारे जामा मस्जिद के मौलवी साहब हों, यह ​सभी हमें कहेंगे कि गाँधीजी के देश में हम नहीं स्वीकार करेंगे fascist हिंदुत्ववाद | यह ​हिंदुत्ववाद के एक नंगा नाच हो रहा है, गाँधीजी के देश में यह ​भी हमें गाँधीजी का डंडा देते हैं | मैं तो कहती हूं  कि अगर गाँधीजी इतना प्यारा है, Owaissi भाई आप भी अमल कर डालो| या जो भी उनका हवाला देते हैं, वह Arundhati Roy भी कह गई कि यह ​जो naxals हैं, they are “Gandhians with guns.”  उनको भी ज़रा नपुंसकता का या अहिंसा का पाठ पढ़ाइए, कोई नहीं पढ़ाता | नक्सल्वादियों को और Communists को चाहिए यह ​पाठ परन्तु केवल हिन्दुओं को थोपना और इसीलिए हाल ही के दशक में आप देखेंगे कि मुस्लमान गाँधीजी का ज्यादा हवाला देते हैं | हमें और भी ज़लील करने के लिए, they will guilt trap us.  कि हम तो बिगड़ जा रहे हैं, हम तो हिंसा की तरफ जा रहे हैं | हिन्दू, जो Icons हैं उनकी जो परिभाषा और Idea of India है उसको नकार रहे हैं | तो यह ​जो अब समझ आती है, कि उनको क्यूँ पसंद है गाँधीजी | Because he was a dismal failure.  नपुंसक पुरुष failure नहीं तो और क्या होगा ? तो यह इसलिए हमपे यह ​Icon थोपा जा रहा है, और अब जब पता चल रहा है तो अब कौन गाँधीजी बनना चाहेगा?

Sushil Pandit: आज विडंबना यह ​है कि पाकिस्तान हमको धर्म-निरपेक्षता और गाँधीजी के आदर्शों पर चलने का नसीहत दे रहा है | वह कह रहा है कि इस देश में हिंदुत्व की शक्तियां हावी हो गईं हैं और हमने अपनी पंथ-निरपेक्षता और गाँधीजी को कहीं पीछे छोड़ दिया है | इसकी नसीहत हमें पाकिस्तान दे रहा है| और कश्मीर की जो mainstream parties हैं, जो पृथकतावादियों का Trojan horse हैं, उनकी अटल जी की शानोशौकत में पढ़े गए क़सीदे, और पाकिस्तान की गाँधीजी के ऊपर दी हुई नसीहत, इसमें कोई फर्क नहीं दिखाई देता है | यहाँ इस सरकार को याद दिलाती हैं अटलजी, अटलजी और अटलजी |

उन्हें मालूम है कि उनको फ़ायदा पहुँचा​ने वाले कौन थे? देखिए, विभाजन के विभीषिका के बीचों-बीच यह जिन्नाह का हम पर खाया गया तरस था जो उन्होंने कहा कि हिन्दुओं को उनके हित की रक्षा के लिए अच्छा नेतृत्व भी उपलब्ध नहीं है| उन्होंने Congress को और गाँधीजी, नेहरु को आपसी बातचीत में कटघरे में खड़ा कर के कहा था I Pity Hindus that they don’t have the leadership to look after their interests.

Madhu Kishwar: हमें भी जिन्नाह ही चाहिए | He delivered more than he promised.

Sushil Pandit: Absolutely.  वह क्यूँ नहीं कदम चूमेंगे गाँधीजी के | गाँधीजी ने जो नेतृत्व दिया, जो निर्णय लिए, जो अकर्मण्यता दिखाई, जो पूरी भूमिका निभाई उन्हें गाँधीजी की तस्वीर, जिन्नाह के तस्वीर के साथ रखनी चाहिए | बल्कि इस बार देखिए पाकिस्तान में अगर आप TV Shows को track करें, वहाँ के जो नामानिगार हैं जो वहाँ  पे comment करेंगे, कि यह ​हमारी खुशकिस्मती थी कि 40’ के दशक में मोदी जैसा नहीं था, गाँधीजी-नेहरु जैसे leaders थे तो आपका पाकिस्तान बन गया| अब आप होश के नाख़ून  कीजिये| यहाँ अभी leadership थोड़ी बदली है, वहाँ  पे लोग अभी जागे हैं | नारा लगता था कि हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे पाकिस्तान |

Madhu Kishwar: नहीं, नहीं, लड़ के लिया है पाकिस्तान, हँस के लेंगे हिंदुस्तान |

Sushil Pandit: उस वक़्त तो कुछ लड़ा-वडा नहीं था, हमें पिटा था | Jinnah ne तो कहा था कि  “I have created Pakistan on my typewriter.”  It was his bravado, the way he said this.  एक बात उन्होंने और कही, “Pakistan was my maximalist demand.  मुझे तो पता था  कि negotiation में कुछ ऊपर-निचे settle करना पड़ेगा | मुझे तो सब कुछ मिल गया जो माँगा था |”  वह उनकी आशा से भी अधिक मिला उन्हें | यह ​जिन्नाह ने अपने मुह से कहा है | अब यह वह  भारत नहीं है जिसको हमने विभाजित करा लिया और निकाल के ले गए अपने टुकड़े करा लिए |   उस वक़्त की जो leadership थी अगर मरणोपरांत भी उनपर द्रोह का मुक्कदमा चल सकता है तो हमें चलाना चाहिए | हमने Partition studies को किसी university के पाठ्यक्रम में नहीं डाला है | हमारे institutions में इसपर कोई PhD नहीं होती है | Partition was perhaps one of the biggest tragedies of human history.

वह जो चालीस के दशक में तीन महानतम आपदाएं आईं मानवता पर, जो त्रासदियाँ झेलीं 40’ के दशक में :  एक था Second World War,  दूसरा था Jewish Holocaust, और तीसरा था भारत का विभाजन| पहली दो के ऊपर तो आज भी Phd हो रही हैं, University में पाठ्यक्रम हैं, किताबें छपती हैं, कई जगह तो वह trials और investigations चल रही हैं,  कि यह ​लोग जो war criminals से बच कर भागे वह कहाँ छुपे, कहाँ दफ़न हैं| DNA sample निकालो, उसकी पुष्टि कराओ कि यह ​यहीं था, उसको किसने पनाह दी, यह ​सब चल रहा है | आज भी इन विषयों पर paper लिखे जा रहे हैं | Partition के उप्पर कुछ नहीं हो रहा है |

Madhu Kishwar: अगर कुछ नहीं हो रहा होता, तो वह भी मैं माफ़ कर देती| Partition studies की एकाएक शुरुआत होती है Ford Foundation की grants द्वारा | जिसमे एक यह ​बहुत fashionable, बहुत popular Feminist थीं, कमला भसीन जी, ऋतू मेनन जी, उर्वशी भुट्टालिया जी, हमारे आशीष नंदी जी, ये ​सारे scholars इसमें लिप्त होते हैं | और Partition studies जो की जाती हैं खासकर स्त्रियों के नज़रिए से चीज़ों को देखने, समझने, बूझने की, वह हिंदुस्तान और पाकिस्तान का joint project बना करके  की जाती है |

और इसमें महिलाओं का कमला भसीन, ऋतू मेनन, उर्वशी भुट्टालिया का बहुत बड़ा role रहा | अब जो यह Partition studies होती हैं, और जो इन्होने Histories तथाकथित इक्कठी  की Ford Foundation, और बाकी funding agencies द्वारा होती हैं | Ford के पास बहुत data है | वह जो survivors के साथ उसमे निष्कर्ष लाती हैं यह ​महिलाएं उसमे main thrust है, अगर आप उनकी किताबें पढ़ें, आशीष ने ज्यादा बांग्लादेश पे काम किया, वह भी लिपा-पोती करने का |

इन्होने पाकिस्तान की Feminists के साथ मिल के काम किया |  पाकिस्तान की Feminists ने अपने देश को इस तरह नहीं लताड़ा है | इन्होने सारा narrative जो build किया है, वह यह ​है कि देखिए हिन्दू Patriarchy ने कितने जुल्म ढाए अपनी ही महिलाओं पर किये | उनको कैसे क़त्ल किया गया, कैसे उनको कुएं में धकेला गया, कैसे उनको तथाकथित बचाने के लिए | मतलब यानी सौंप देते भेड़ियों के पास ? Their lives meant nothing.  और पूरा narrative है, एक तरह तो हिन्दू और सिख पुरुष Patriarchy callousness के जिन्दा स्तम्भ बन जाते हैं, जिन्होंने औरतों की जीवन की मूल्य नगण्य​ समझ के उनको मारा अपने हाथों से या मर जाने को मजबूर किआ|

इनको जौहर और wife-burning में कुछ फर्क नहीं दीखता | जौहर भी हिन्दुओं की विकृत मानसिकता का एक चिन्ह इनको लगता है | उसी किस्म से वह जो औरतें मरीं हज़ारों-हज़ार कोई गिन्नती भी नहीं है | फिर भारत सरकार ने भी कैसे उन औरतों को यहाँ बदहाल छोड़ दिया या हिन्दू परिवारों ने स्वीकार नहीं किया | मतलब सारा narrative हिन्दू-परिवार को demonize करने का | I think we should demand कि Ford Foundation के पास जो original interviews हैं वे public करने चाहिए | वह नहीं किए इन्होने | वहाँ  मैं नहीं मान सकती कि किसी सिख परिवार ने या जिसके घर  की महिला कूदी हो या जिसने अपनी बच्चियों के गले काटे हों उस समय  की मज़बूरी में या जिन औरतों ने prefer किया  की हम कुंवे में कूद जाएं, उस परिवार के पुरुषों के मुह से ऐसी बात सुनना कि औरतें तो क्या हैं हम और ले लेंगे, हमारी इज्ज़त ज्यादा important है | Thanks to Youtube, आज भी Partition के जो बचे-कुचे, कुछ लोगों ने उसपे अपने डाले अनुभव, बहुत अलग texture है उस कहानी का |

तो Partition studies हमारी universities में, ICSSR ने, ICHR ने, किसी ने कुछ नहीं किया |  यह ​विदेशी funding agencies आके Pakistan का narrative यहाँ चलाती हैं| यह ​दुष्टात्मा थीं पुरुषों की जिन्होंने अपनी घर की औरतों को यहाँ पे अपनी हिंसा का, अपनी तथाकथित इज्ज़त, मर्दानगी का शिकार बनाया| अब बताइये यह है इनका narrative, यह ​है Partition studies.  यह ​public trial होनी चाहिए, जिन्होंने लीपा-पोती की है Partition पे और M. K. Gandhi के कुकर्मो पे, और नेहरु के कुकर्मो पे, और जो सारा यह ​fake narrative चलाया Aligarh historians ने, JNU historians ने, DU historians ने इनकी Public trial होनी चाहिए | कायदे से इनके जो students हैं, they should be blacklisted.  जो भी इनके माध्यम से पढ़ के नौकरी ढूंढता है, मेरा बस चले तो मैं तो blacklist कर दूँ |   हिंदुस्तान में तो नौकरी मिल नहीं सकती, पाकिस्तान में ढूंढिए | Now, for your last comments सुशिलजी और शंकरजी |

Shankar Saran: मैं उसमे जो सुशिलजी कह रहे थे, उसमे एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि Partition studies actually नहीं हुई है | आपने, मधुजीने,  भी जो कहा वह यही कहना हुआ कि Partition studies नहीं हुई है | अगर आप उसपर studies कराएंगे, original documents, stories सारे तो यही हैं | उसपर लिपा-पोती वह इसलिए कर पा रहे हैं क्यूंकि वह यहाँ पे नहीं हैं | और हमें विदेशियों को दोश नहीं देना चाहिए क्यूंकि हमारी अपनी universities, हमारा अपना academia, हमारा अपना media और हमारे अपने politicians, इन सब ने उसकी लिपा-पोती की है और इसलिए विदेशी भी उसको हवा देते हैं और उसको use करते हैं | वही Ford Foundation China में Tibet पर research नहीं करवाता| वही Ford Foundation Singapore में research नहीं करवाता,  Hong-Kong में research नहीं करवाता | तो वह Ford Foundation यहाँ पे क्यूँ करवा रहा है ? क्यूंकि हमारे लोग उसको facilitate करते हैं, हमारे लोग उसको आदर देते हैं | आप कह रही हैं कि उनको blacklist करना चाहिए |  मैं तो देख रहा हूं कि आप record देखिए कि उस तरह के लोगों को reward मिलता है, राष्ट्रीय सम्मान मिलता है | और जिन लोगों ने वास्तविक इतिहास लेखन किया, या वास्तविक analysis  की उनपर लांछन लगाया गया और हमारे ही लोगों ने लगाया| तो विदेशोयों को मैं समझता हूं कि इस तरह से दोश नहीं देना चाहिए | अगर हम, हमारे नेता, हमारी media, हमारे विद्वान अगर इस पर निष्पक्ष भाव भी रखें तो हम इस धार को पलट सकते हैं | मगर हम सिर्फ विदेशियों को ही दोश देते रहेंगे तो यह ​हमारे political parties को suit करता है | क्यूंकि फिर वह मनमानी करते रहते हैं और कहते हैं कि हम क्या करें, वह तो विदेशी लोग कर रहे हैं | तो हमें अपनी ओर ही देखना चाहिए, हमारे अपने ओर ही नज़र डालना चाहिए, यह ​मेरा अपना मत है |

Sushil Pandit: मैं इसी बात को आगे बढ़ाता हूं | अगर हमें अपने इतिहास के परिष्कार की कोई उम्मीद थी तो राजनितिक सत्ता परिवर्तन के आने से वह उम्मीद बढ़ी थी | लेकिन हमारी ही मानव संसाधन मंत्री, शिक्षा मंत्री जब खुले-आम अपनी पीठ ठोकते हुए कहते हैं कि मैंने कोई किताब या chapter तो दूर, एक paragraph, full stop और comma तक नहीं बदला है | और हमारे शिक्षा व्यवस्था में, हमारे इतिहास की पुश्तकों में और हमारी जितनी भी पाठ्य सामाग्री है, हमने उसमे कुछ नहीं बदला है, हमपर नाहक आरोप लगते हैं भगवाकरण के |

तो आप यह ​उम्मीद किस्से लगाएंगे ? इन पाठ्यक्रमो के आने की, पुश्तकों के इतिहास को ठीक करने  की, यह नया पाठ्यक्रम Partition studies शुरू करनेकी यह ​उम्मीद किससे लगाएंगे ? पुनर्मूल्यांकन की उम्मीद किससे लगाएंगे? और आज जो नेतृत्व है जो इस मूल्याकन  की, इस इतिहास के परिष्कार की मांग देकर सत्ता में आया है, आज वह क्या कह रहा है? आज वह हिन्दू के बारे में, हमारी त्रासदी के बारे में, दंगों के बारे में, हमारे क्रूर इतिहास के बारे में क्या आकलन है? वह इस बिमारी का क्या इलाज बता रहा है? तो यह आशा केवल हम एक programme में व्यक्त कर के निकल जाएं और उसका क्या होने जा रहा है ?  उसके प्रतिज्ञा, आशंका है, तो मुझे लगता है कि बात थोड़ी अधूरी रह जाएगी |

हमें दबाव बनाना पड़ेगा |  इसके लिए अगर एक Foundation बने, इसके लिए अगर धनराशी इक्कठी हो यह बात होनी चाहिये | यह ​social media एक  बहुत बड़ा आशीर्वाद है – हम लोग बात कर पा रहे हैं | North West Province में पठार एक स्थान है, एक plateau है, उसको पोटोहर कहते हैं | वहाँ  के एक सिख, एक अधेड़ व्यक्ति ने पोटोहर में क्या हुआ 1947 में, इसपर video डाले हैं | आप उसको सुनना शुरू करें, आप रातों की नींद भूल जाएंगे | इसलिए कह रहा हूं कि बटवारे के समय क्या हिंसा हुई, क्या-क्या भोगा गया, उसको बतलाने वाले उसकि गवाही देने वाले, उसका first hand वृत्तांत सुनाने वाले अभी जिंदा हैं | यह कुछ और साल निकल जाने के बाद नहीं रहेंगे | उन्होंने अपने माता-पिता से सुना है, जब भाग कर के आए थे, बच्चे थे, स्मृति में से बोलते हैं | आज भी वह बचे-कुचे लोग जिंदा हैं | आप उनके पास जाकर anecdotal evidence ले सकते हैं | वह किसी किताब में, किसी सरकारी दस्तावेज में ना हो, वह जिंदा उस बात के गवाह हैं| इन लोगों से, हमें इन​ anecdotes को इक्कठा करना होगा | और इन छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़ कर इस Jigsaw puzzle को पूरा करना होगा| और यह ​सरकार करने वाली नहीं है| यह ​सरकार कमसेकम, यह ​नेतृत्व कमसेकम इसकी प्राथमिकता करेगा इस दिशा में, मैं इसपर आश्वस्त हूं | पिछले कुछ सालों से राह तकते-तकते देख कर, बिलकुल पूरी तरह केवल एक ही मोह भंग नहीं हुआ है महात्मा गाँधीजी से| तो इस विषय में, इस सरकार से, इस प्रतिष्ठान से अपेक्षा करना मूर्ख​ता होगी | इसपर स्वयं कुछ करना होगा |

Madhu Kishwar: मैंने दस-पंद्रह दिन पहले ही अपने साथ यह ​प्रण किया  कि जितने भी Youtube पे आजतक Partition के testimonies डाली गई हैं उनको इक्कठा कर के, उनको ढंग से संकलन कर के एक शुरुआत तो मैं करने ही वाली हूं| और इसमें मैं चाहूंगी कि आप दोनों का भी साथ मिले| और कमसेकम हम तीन आज कह सकें कि इस काम में हम इक्कठे होंगे और फिर लोगों से सहमती मांगेंगे | शुरुआत तो हम कर देंगे, कोई हमारी Foundation बने, न बने, मेरे को अपना घर बेचना पड़े, मैं वह भी तैयार हूं | मुझे किसी औरकी राह ताकने  की जरुरत नहीं है |

Sushil Pandit: मैं अपनी ओर से एक राशि आज commit करता हूं | मैं एक लाख रुपया अपनी ओर से आप एक bank account खोलें, मैं आज डालूँगा | आज मेरी माँ का श्राद्ध है, उनकी स्मृति में मैं डालूँगा |

Madhu Kishwar: इसी राशि में मैं पांच लाख डालूंगी| मेरी भी यही भावना थी| मेरे Partition refugee families ने कैसे अपना दुख-दर्द अपने ही अंदर संजो के रखा होगा | In my growing years तो मैंने सुनी कहानियाँ पर जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, मेरे parents हमें prejudiced नहीं करना चाहते थे| हर वक़्त जहर की घुट्टी नहीं पिलाना चाहते थे| हमें कड़वाहट से बचाने के लिए बहुत से दुःख दबा के रखा | परन्तु, मैं जानती हूं क्यूंकि सुनते थे तो कहानी या accounts तो भड़क उठता था दिमाग, अशांत हो जाता था | मेरे पापा तो during his last years, he just compulsively kept on repeating, कैसे वह बाल-बाल बचे | कैसे वह जिहादियों के हाथ से escape किए लाहौर से, और किस बदहाली में आए वगैरह | मैं कहानी सुनना नहीं चाहती थी | मुझे लगता था  कि मैं normal अपना balance खो पाऊँगी | उस वक़्त मैंने नहीं सुना ढ़ंग से | क्यूंकि एक अंदर resistance थी  कि समाज में जियेंगे कैसे इतना गुस्सा अंदर ले कर | पर as my tribute to their resilience, their nobility in not making us bitter beings, commit करती हूं | 

 यहाँ तो मोदी ने एक टोपी क्यूँ नहीं पहनी? कश्मीर से कन्याकुमारी तक ही नहीं, Los Angeles से Tokyo तक जहाँ कहीं भी मुस्लमान हैं, 6 साल का बच्चा है चाहें, मोदी ने टोपी क्यूँ नहीं पहनी उसको घुट्टी पिला दी जाती है कि तुमसे नफरत करता है, यह ​जिहाद करता है तुम्हारे से, fascist है| हम अपना इतना दुःख-दर्द संजो के बैठे हैं अंदर |

 तो मैं भी पांच लाख की शुरुआत अभी करुँगी | और मैंने यह ​तय किया है कि जो भी मेरा है maximum उसको encash करके इन्ही कामो में लगाऊं मैं | और आपका सहयोग राशि से ज्यादा मुझे जरुरत है आप दोनों के वक़्त की| इस project को nurture करने  की, शुरुआत तो हम कर देंगे पर nurture करना बहुत जरुरी है|

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