1947 में अंग्रेज़ों ने हमें शायद आज़ादी नही दी,उन्होंने केवल चुनिंदा Congress Party के नेताओं को Power ट्रान्स्फ़र कर दी |
जवाहर लाल नेहरु ने अंग्रेज़ों से मिल कर अपनी पार्टी के बहुमत के ख़िलाफ़ जाकर प्रधान मंत्री का पद सरदार पटेल से ज़बरन हथिया लिया था।
कांग्रेस के अधिकतर नेता शायद इसलिए नेहरु को स्वीकारने को तैयार नहीं थे क्यूँकि उन्हें मालूम था की जवाहर लाल भले हीं भारत देश की पैदाइस हों किंतु उनका चाल चलन, मानसिकता, रहन सहन, दिमाग़ी सोच बिल्कुल अंग्रेज़ों की नक़ल में थी।
इसीलिए देश की हकूमत की कमान सम्भालने के बाद नेहरु ने यह सुनिश्चहित किया कि भारत की प्रशासन प्रणाली, क़ानून व न्याय व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली बिल्कुल अंग्रेज़ी ढर्रे से ही चले।
अंग्रेज़ों द्वारा गठित Indian Civil Service में हल्का सा फेर बदल किया और उसका नाम रखा Indian Administrative Service ।
परंतु ना तो उसकी कार्य प्रणाली में कोई अंतर आया और ना ही क़ानून क़ायदों में। वही अंजाम police service, judicial system, education system का हुआ।यानी गोरे अंग्रेज़ों की जगह भूरे और काले अंग्रेज़ों ने ले ली?
इसीलिए भारत में अंग्रेज़ों के जाने के बाद अंग्रेज़ी भाषा और अंग्रेज़ीयत, यानी colonial mindset का बोलबाला बढ़ा है, कम होने की बजाए ।
क्या यह सबसे बड़ा कारण है भारत में कुशासन बढ़ता जा रहा है?
इन्हीं सवालों पर चर्चा के लिए Retd IAS ऑफ़िसर और The Jaipur Dialogues के संस्थापक संजय दीक्षित जी आज हमारे कार्यक्रम में शामिल होंगे और bureaucracy यानी अफ़सरशाही में अपने अनुभवों के आधार पर हमें बताएँगी की भारत का शासन इतना inefficient और भ्रष्ट क्यूँ बना रहा है?
1. Is politics in command or the bureaucracy?
2. What kind of changes are needed to make governance in India accountable, transparent and pro-people?
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