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किश्वर: आज हम पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ से बातचीत करेंगे एक बहुत ही रोचक विषय पर। पुष्पेंद्र जी क्योंकि किसी भी introduction के मोहताज नहीं हैं, therefore without much ado, मैं आपसे सिर्फ यह चाहती हूं कि हम सीधा subject पर आएं। हमें जो आपने यह राष्ट्रीय दिनदर्शिका issue की है 29 फरवरी को, इसका सारा इतिहास बताइए, क्योंकि इसकी कहानी तो गजब की है। मुझे तो चौंका दिया। तो जरा इसके बारे में बताइए।
कुलश्रेष्ठ: मधु जी, यह बिल्कुल वैसी ही कहानी जैसे भारत के संविधान में लोगों को नहीं पता था कि special committee बनी और उसमें कोई 22 sketches को भारत के संविधान में जोड़ा गया।
किश्वर: रामायण महाभारत से…
कुलश्रेष्ठ: रामायण महाभारत से हैं, उसमें सुभाष बाबू हैं, छत्रपति शिवाजी हैं और वह 22 चित्र original copy में किसके कहने पर गायब कर दिए गए यह mystery है आज तक?
कुलश्रेष्ठ: Original copy जो भारत के संविधान में है, उसमें नंदलाल बोस से कहा गया कि भारत की सभ्यता से सम्बंधित चित्र बनाएं, लेकिन original copy आने के बाद बाकी कॉपियां जब छपी तो किसीके के कहने से गायब किया गया यह सब.
किश्वर: इसका कोई record नहीं है।
कुलश्रेष्ठ: Record नहीं है। इसी तरीके से भारत की संसद में इस पर चर्चा हुई कि भारत का calendar कैसा होगा? क्या यह Before Christ-After Christ वाला calender होगा या तो फिर भारत की विक्रम संवत से होगा, शक संवत से होगा? एक लंबी बहस चली 1957 में, और बाकायदा पार्लियामेंट में।
किश्वर: दोनों Houses में?
कुलश्रेष्ठ: जी और उसमें यह फैसला लिया गया कि जो भारत का सरकारी calender जारी होगा, वह विक्रम संवत से होगा। अब संसद के अंदर सब कुछ मौजूद है, लेकिन जैसे आज तक उन चित्रों की हटाने की बात का पता नहीं चल पा रहा है देश को, वैसे ही यह भी नहीं पता चल पा रहा कि जब यह फैसला हुआ, तो 1957 से लेकर आज तक जो भी calender छपते हैं सरकारी, वह कैलेंडर छपते हैं English की dates के साथ। तो क्या वजह है है कि आप देखेंगे कि बैंक में जो calenders हैं, जिसमें बड़ी date English की है और छोटी date विक्रम की, जबकि यह तय हुआ था कि यह उल्टा होगा, विक्रम संवत की date prominent और English की date छोटी होगी।
किश्वर: देखो एक यह भी बात है पुष्पेंद्र जी। उन्होंने दबा दिया विक्रम संवत को, परंतु भारत का emotional संस्कृतिक calender आज भी वही है। सबको अपने आप ही पता चलता है कि कब मकर संक्रांति है, कब कुंभ पर जाना है, कोई बुलाता नहीं, कोई official calender पर नहीं लिखा होता और हर चीज उसी से चलती है।
कुलश्रेष्ठ: मधु जी, भारत के संविधान का Article 1 क्या है देखिए। India, that is Bharat. India पैदा हुआ 1947 में। भारत तो हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता है।
किश्वर: अब तो 5000 साल से बहुत पहले की बात होती है।
कुलश्रेष्ठ: फिर भी 5000 साल की एक cut off date लेते हैं, तो सारी की सारी चीजें ये होती, पर मैं आज ये मानता हूँ 2020 में कि एक बहुत सोची समझी साजिश के तहत ये किया गया, भारत का समाज अपने इतिहास से दो चार ना हो, रूबरू ना हो। उसका बहुत सोच समझ कर किया गया।
किश्वर: सुनियोजित षड्यंत्र था।
कुलश्रेष्ठ: भारत के संविधान में जो तस्वीरें है वो निकाल दीं। यह जो नेशनल कैलेंडर था इसको किसके कहने से, जो फैसला संसद में हुआ उसको क्यों हटाया गया
किश्वर: आपको क्यों लगता है कि ऐसा किया गया होगा? इससे किसी का नुकसान तो था नहीं। बहुत सी बातें यहां पर लाई गई क्योंकि मुसलमानों को पसंद नहीं आएगी, बहुत सी बातें इरेज़ की गई क्योंकि वो बेचारे खफा ना हो जाए। अच्छा यह तो Christian Calendar है, इतनी गुलामी After Christ, Before Christ तब से?
कुलश्रेष्ठ: 14 अगस्त 1947 को भारत के उस समय के गृहमंत्री ने एक तार भेजा, देश के जाने–माने एक गायक को, उनका नाम था पंडित ओमकारनाथ ठाकुर। उनको तार भेजा और उनको कहा गया कि आज मध्यरात्रि में संसद के अंदर आपको वंदे मातरम गाना है। ठाकुर जी ने बोला कि मैं गाऊंगा, लेकिन उन्होंने कहा कि एक शर्त है मेरी तो सरदार पटेल ने बोला बताइए, ठाकुर जी उस समय मद्रास में थे, उन्होंने कहा कि मैं 22 पंक्तियों का 9 मिनट का पूरा वंदे मातरम गाऊंगा। सरदार पटेल ने इस शर्त को मान लिया। तो आप सोचिए कि भारत के संसद में उस दिन मध्यरात्रि में जो वंदे मातरम हुआ है वह पूरा हुआ है , लेकिन उसके बाद एक कमेटी बनी जिसमें मुसलमानों का मेजर ऑब्जेक्शन था वंदे मातरम में दुर्गा का, और तमाम देवियों का वर्णन है तो यह हमारी आस्था को ठेस पहुंचाता है। उसके बाद तुरंत एक कमेटी बनी, उसमें मौलाना आजाद थे। तो आज जो हम चार पंक्तियों के वंदे मातरम सुनते हैं यह उसी समय दर्ज कराई गई थी क्योंकि उनके अनुसार पूरा वंदे मातरम 9 मिनट का 22 पंक्तियों का उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचता है इससे। तो आप यह कह सकते हैं कि खंडित भारत में वंदे मातरम तो पूरा बजा लेकिन वंदे मातरम को खंडित कर दिया।
किश्वर: तो क्या हमारी सरकार इस्लामाबाद से चल रही थी? पार्टीशन इसी बात पर हुआ कि जिन्ना हर बात पर वीटो पावर चाहते थे, मुस्लिम के पास वीटो पावर होना चाहिए क्योंकि हम Equality से नहीं चल सकते, क्योंकि Equlity में आपके वोट ज्यादा हैं तो majority rule हो जाएगा इसीलिए Equality से नहीं चल सकते हमें वीटो चाहिए और वह करते–करते पाकिस्तान ले गए , अब उसके बाद यहां पर भी उनकी वीटो तो चलनी थी तो पार्टीशन काहे को।
कुलश्रेष्ठ: बी आर अंबेडकर की किताब है "Thoughts on Pakistan" उसमें उन्होंने साफ–साफ लिखा है कि जब विभाजन हो गया तो मुस्लिमों को यहां नहीं रहना चाहिए उन्हें पाकिस्तान जाना चाहिए , लेकिन आज यह बात कोई कह दे तो हंगामा मत सकता है कि अरे यह तो सभी Rightist लोग हैं Right Wing हैं। यह देश तोड़ने की बात करते हैं। वह सच्चा आदमी जो दो टुक बातें करता था उसकी बातों को नहीं आने दिया।
किश्वर: मुसलमान उसको अपना के बैठे है उनको हीरो बना दिया। अंबेडकर की बातें कहां किसी को पढ़ने दी गई, उनके इस किताब को कहां छिपा कर रखा गया?
कुलश्रेष्ठ: उसकी वजह यह है कि आजादी के बाद से सारा Narrative कुछ खास वर्ग के लोगों के पास था, अखबार, मीडिया सब कुछ… Continued on video
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